डेस्कः थकान मिटाने, ‘फील गुड’ करने और बालों की चमक बढ़ाने के लिए लोग अक्सर हेयर स्पा का सहारा लेते हैं। हालांकि, ब्यूटी पार्लर या सैलून में हेयर स्पा की प्रक्रिया के बाद बालों की धुलाई ‘ब्यूटी पार्लर स्ट्रोक सिंड्रोम’ (बीपीएसएस) नाम की एक गंभीर दुर्लभ स्वास्थ्य जटिलता का कारण बन सकती है।
पार्लर में बैकवॉश बेसिन है खतरा
विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि ब्यूटी पार्लर या सैलून में बालों की धुलाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ‘बैकवॉश बेसिन’ पर एक विशेष कोण पर सिर टिकाकर बैठने या लेटने से न सिर्फ गर्दन में दर्द और चोट की समस्या उभर सकती है, बल्कि कुछ मामलों में व्यक्ति के स्ट्रोक का भी शिकार होने का खतरा रहता है।
हो सकता है स्ट्रोक का खतरा
अमेरिकी न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. माइकल वेनट्रॉब ने 1993 में पहली बार बीपीएसएस की पहचान की थी। उन्होंने पाया था कि स्ट्रोक से जुड़े गंभीर लक्षणों से जूझ रहे उनके कुछ मरीजों में ब्यूटी पार्लर या सैलून में बालों में शैंपू कराने के बाद ये समस्याएं उभरी थीं।
क्या है स्ट्रोक ?
स्ट्रोक एक तरह का मस्तिष्काघात है, जो मस्तिष्क में खून का प्रवाह घटने पर होता है। यह आमतौर पर मस्तिष्क में प्रमुख रक्त वाहिका में खून का थक्का जमने या उसके फटने के कारण होता है, जिससे कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में ऑस्कीजन, ग्लूकोज व अन्य पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं और वे दम तोड़ देती हैं।
आजकल पार्लर में बैकवॉश बेसिन का खूब इस्तेमाल
ब्यूटी पार्लर या सैलून में बाल धोने की प्रक्रिया के दौरान ग्राहकों से अक्सर कुर्सी पर बैठकर अपना सिर और गर्दन पीछे लगे ‘बैकवॉश बेसिन’ पर टिकाने के लिए कहा जाता है। अध्ययनों से पता चलता है कि ‘बैकवॉश बेसिन’ की कठोर सतह पर एक विशेष कोण पर सिर और गर्दन टिकाए रखना बीपीएसएस का कारण बन सकता है।
क्यों है स्ट्रोक का खतरा ?
दरअसल, शैंपू के दौरान सिर और गर्दन को बार घुमाने की जरूरत पड़ती है और उसमें झटका भी महसूस होता है। इससे गर्दन के पास रीढ़ की हड्डी के ऊपरी हिस्से में मौजूद हड्डियां उस रक्त वाहिका को दबा सकती हैं, जो मस्तिष्क के निचले और पिछले हिस्से में खून की आपूर्ति करती है। बीपीएसएस के कुछ मामलों के लिए रीढ़ की हड्डी के विभिन्न हिस्सों पर उभरे हड्डी के छोटे-छोटे टुकड़ों को जिम्मेदार पाया गया है, जिनके कारण आसपास की धमनियां या तो दब या फिर फट सकती हैं।
कम उम्र के लोग भी हो सकते हैं शिकार
स्ट्रोक के मामले अक्सर बुजुर्गों या उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्या से जूझ रहे लोगों में सामने आते हैं, लेकिन कम उम्र के स्वस्थ लोग भी इसका शिकार हो सकते हैं। अध्ययन भले ही दिखाते हैं कि 50 साल से अधिक उम्र की महिलाओं में बीपीएसएस के मामले सबसे ज्यादा दर्ज किए जाते हैं और रक्त वाहिकाओं का सकरा होना तथा रीढ़ की हड्डी के गर्दन के पास वाले हिस्से में गांठें उभरना इसका जोखिम बढ़ाने वाले मुख्य कारक हैं। हालांकि, उम्र और स्वास्थ्य स्थिति से परे यह समस्या किसी में भी उभर सकती है।
स्विट्जरलैंड में अब तक 10 मामले आए सामने
स्विट्जरलैड में 2016 में हुए एक अध्ययन में देखा गया कि 2002 से 2013 के बीच बीपीएसएस के महज 10 मामले सामने आए। इसके बावजूद बीपीएसएस के लक्षणों के प्रति आगाह रहने की जरूरत है।
इन लक्षणों को हल्के में न लें
-बीपीएसएस के प्रमुख लक्षणों में सिरदर्द, चक्कर, आंखों के सामने धुंधलापन छाना, मिचली, उल्टी, गर्दन में दर्द और शरीर के एक तरफ के कुछ हिस्से का सुन्न होना शामिल है। कुछ मरीज अवचेतन अवस्था में भी जा सकते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि बीपीएसएस के लक्षण धीरे-धीरे और देरी से उभरते हैं, जिससे चिकित्सकों के लिए बीपीएसएस की पहचान और पुष्टि पारंपरिक स्ट्रोक के मुकाबले अधिक मुश्किल होती है।
क्या सावधानियां बरतें
-अगर ‘बैकवॉश बेसिन’ के इस्तेमाल के दौरान आपको सिर या गर्दन में दर्द या असुविधा की शिकायत हो, तो सिर पीछे के बजाय आगे की तरफ से बेसिन पर टिकाएं। और अगर यह संभव न हो, तो बाल धुलवाते समय किसी से गर्दन के निचले हिस्से को सहारा देने के लिए कहें। बाल धोने में कितना समय लगता है, पार्लर या सैलून कर्मी कितनी तेजी से शैंपू लगाते हैं और बालों पर उंगलियां फिराते हैं, ये सब बीपीएसएस का खतरा तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे में पार्लर या सैलून कर्मी से हल्के हाथों से शैंपू लगाने और बाल धोने का आग्रह करें। ‘बैकवॉश बेसिन’ पर गर्दन टिकाने में जैसे ही असुविधा महसूस हो, उनसे प्रक्रिया कुछ देर के लिए रोकने को कहें।