हजारीबाग… दोपहर में जयंत सिन्हा ने चुनावी राजनीति को अलविदा कहा और शाम होते होते बीजेपी के मनीष जायसवाल खेमे में जश्न का माहौल हो गया । बीजेपी ने दो बार के सांसद जयंत सिन्हा का टिकट काट दिया और मनीष जायसवाल को हजारीबाग लोकसभा सीट से प्रत्याशी बना दिया । सवाल ये उठता है कि आखिर जयंत सिन्हा का टिकट कैसे कटा और मनीष जायसवाल ने कैसे बाजी मार ली ।
जयंत सिन्हा के टिकट कटने की पटकथा उसी दिन से लिखी जानी शुरु हो गई थी जब से उनके पिता यशवंत सिन्हा ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ खुलेआम मोर्चा खोल दिया था । मनीष जायसवाल ने मौके का फायदा उठाया और तीन साल पहले से ही टिकट लेने के लिए फिल्डिंग शुरु कर दी थी । कहा जाता है कि मुंबई से आए जयंत सिन्हा की पकड़ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में ना के बराबर थी जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा । इधर मनीष जायसवाल ने अपने पसंद का आएरएस प्रमुख और जिला अध्यक्ष हजारीबाग में तैनात कर जयंत सिन्हा की चुनावी राजनीति की कब्र खोद दी । हांलाकि टिकट कटने की वजह जो कार्यकर्तओ को बताई जा रही है उसमें पार्टी के इंटरनल सर्वे को आधार बताया जा रहा है लेकिन असली खेल हुआ मनीष जायसवाल द्वारा संघ का वरद्हस्त हासिल करने से ।
इसमें कोई शक नहीं की मनीष जायसवाल बीजेपी के और संघ दोनों के गुडबुक में हाल के वर्षों से शामिल थे जिसकी वदह से टिकट लेने में कामयाब हुए । हांलाकि हजारीबाग में वैश्य वोट कायस्थों के वोटों की तुलना में कम है , बावजूद इसके मनीष जायसवाल ने बाजी मार ली ।
जयंत सिन्हा को लेकर पीएम मोदी और बीजेपी नेता इसलिए भी असहज रहते थे कि उनके पिता ने मोदी के खिलाफ जबरदस्त मोर्चा खोल दिया था । हांलाकि जयंत सिन्हा हर बार यशवंत सिन्हा के बयानों, आरोपों को लेकर व्यक्तिगत राय बताते कर बचते रहे मगर पीएम मोदी का भरोसा नहीं जीत पाए ।
इधर हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र में पिछले कार्यकाल के हुए बड़े कार्यों की तरह कोई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट नहीं आया जिसकी वजह से भी जयंत सिन्हा की लोकप्रियता कम होती नजर आ रही थी । एक और महत्वपूर्ण फैक्टर जो जयंत सिन्हा और मनीष जायसवाल के बीच काम किया है वो है कट्टरता का । मनीष जायसवाल अपनी कट्टर हिन्दुत्व वाली छवि बनाने में कामयाब रहे और जयंत सिन्हा लिचिंग के दोषियों को जमानत मिलने पर माला पहना कर भी हजारीबाग सीट बचा नहीं सके ।