नई दिल्लीः झारखंड के चाईबासा की सांसद जोबा माझी ने राज्य की की आदिम जनजातियों की विलुप्त होती भाषाओं और लिपियों का मुद्दा लोकसभा में उठाया । एक लिखित प्रश्न में जोबा माझी ने पूछा था कि झारखंड की आदिम जनजातियों की भाषाएं, जो उनकी संस्कृति और पहचान का प्रतीक हैं, विलुप्ति के कगार पर हैं। क्या सरकार ने इन भाषाओं को बचाने के लिए कोई योजना बनाई है, और अगर हां, तो इसका विवरण क्या है?
जनजातीय कार्य मंत्रालय ने बताया कि झारखंड की आदिम जनजातियों, जैसे बिरजिया, कोरवा, माल पहाड़िया, परहैया, सौरीया पहाड़िया और खड़िया, की भाषाओं को संरक्षित करने की दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं। जनजातीय कार्य राज्य मंत्री श्री दुर्गादास उइके ने इसकी लिखित जानकारी संसद को दी है ।
आदिम जनजातियों की भाषाओं पर सरकार का जवाब
जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा संचालित “जनजातीय अनुसंधान संस्थान (TRI) को सहायता” योजना के तहत आदिम जनजातीय भाषाओं और लिपियों को संरक्षित करने के लिए विभिन्न कदम उठाए जा रहे हैं। मंत्री ने बताया कि झारखंड समेत देशभर में इन भाषाओं पर इस प्रकार के काम किए जा रहे हैं ष
- द्विभाषी शब्दकोश और भाषा सामग्री: जनजातीय भाषाओं में बच्चों के लिए प्राइमर, शब्दकोश और अन्य शैक्षिक सामग्री तैयार की जा रही है।
- लोक साहित्य का दस्तावेजीकरण: जनजातीय लोककथाओं, गीतों और गाथाओं का संकलन और दस्तावेजीकरण किया जा रहा है।
- शोध और प्रकाशन: जनजातीय भाषाओं और साहित्य पर आधारित शोध और पुस्तकों का प्रकाशन।
- स्वास्थ्य जागरूकता: सिकल सेल एनीमिया जैसे रोगों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए स्थानीय भाषाओं में सामग्री का अनुवाद और वितरण।
- कार्यशालाएं और संगोष्ठियां: भाषाओं के संरक्षण के लिए विशेषज्ञों और समुदायों के साथ संवाद स्थापित किया जा रहा है।विधानसभा में जयराम महतो ने मंईयां सम्मान योजना पर उठाए सवाल, कहा लड़कियां हो जाएंगी निकम्मी
नई शिक्षा नीति के तहत कदम
नई शिक्षा नीति 2020 के तहत बहुभाषी शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। मंत्री ने बताया कि झारखंड में 22 पुस्तकों का विकास और प्रकाशन किया गया है, जो इन भाषाओं के संरक्षण में अहम भूमिका निभा रही हैं। इसके अलावा, 10,000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाओं की पहचान कर उनकी संरचना और लिपियों पर काम किया जा रहा है।
मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा
मंत्री ने यह भी कहा कि मातृभाषा में शिक्षा से बच्चों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़े रखने में मदद मिलेगी। TRI संस्थान और अन्य प्रयासों के माध्यम से आदिवासी समुदायों की भाषाओं और परंपराओं को संरक्षित करने की दिशा में यह एक बड़ी पहल है।