डेस्कः भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अयोध्या फैसले पर खुलकर बात की है। उन्होंने कहा कि इस फैसले की आलोचना करने वाले कई लोगों ने एक हजार से ज्यादा पन्नों के फैसले का एक पन्ना भी नहीं पढ़ा है। उन्होंने जस्टिस रोहिंगटन नरीमन के बयान पर भी प्रतिक्रिया दी, जिसमें कहा गया था कि अयोध्या भूमि विवाद पर फैसला देते समय पंथनिरपेक्षता ‘को उचित स्थान नहीं दिया गया था।’
टाइम्स नेटवर्क इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में शामिल हुए पूर्व जस्टिस चंद्रचूड़ ने जस्टिस नरीमन की टिप्पणियों को लेकर कहा, ‘मैं फैसले का एक पक्ष था, तो यह मेरे काम का हिस्सा नहीं है कि फैसले का बचाव करूं या आलोचना करूं। जब कोई जज किसी फैसले में पार्टी होता है, तो फैसला सार्वजनिक संपत्ति बन जाता है और उसपर दूसरों को बात करनी होती है।’
उन्होंने कहा, ‘खैर, जस्टिस नरीमन ने फैसले की आलोचना की है, तो मैं यह कहना चाहता हूं कि उनकी आलोचना इस तथ्य का समर्थन करती है कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत भारत में जीवित हैं। क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का एक अहम सिद्धांत अंतरात्मा की स्वतंत्रता है और जस्टिस नरीमन जो कर रहे हैं, वह अपनी अंतरात्मा के जरिए कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘यह तथ्य कि हमारी समाज में ऐसे लोग हैं, जो इन विचारों को बाहर निकालते हैं। यह याद दिलाता है कि देश में धर्मनिरपेक्षता जीवित है। मैं अपने फैसले का बचाव नहीं करना चाहता, क्योंकि साफ है कि मैं अपने फैसले का बचाव नहीं कर सकता। हमने पांच जजों के जरिए अपनी बात रखी है और हर तर्क को पेश किया है। ऐसे में हर न्यायाधीश फैसले का एक हिस्सा है। हमारे लिए यह निर्णय लेने का एक सामूहिक काम है और हम छपे हुए हर शब्द पर अडिग हैं।’
जस्टिस नरीमन के धर्मनिरपेक्षता को लेकर की गई बात पर उन्होंने कहा, ‘यह एक धारणा है और कई और धारणाएं भी होंगी। ऐसे में अदालतें वर्तमान मुद्दों पर फैसला लेती हैं। वे उन मुद्दों पर फैसला लेते हैं, जो देश के सामने हैं। नागरिकों के पास आलोचना करने, चर्चा करने, टिप्पणी करने का अधिकार है।
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लोकतंत्र में यह सब संवाद की प्रक्रिया का हिस्सा है। यह जस्टिस नरीमन का नजरिया और हर कोई इस नजरिए का सम्मान करता है, लेकिन निश्चित तौर पर यह नजरिया सत्य के एकाधिकार को नहीं दिखाता है। अंतिम शब्द सुप्रीम कोर्ट का होगा।’
जस्टिस नरीमन ने क्या कहा था
पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन ने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले में शीर्ष अदालत के 2019 के निर्णय की आलोचना करते हुए इसे ‘‘न्याय का उपहास’’ बताया, जो पंथनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ न्याय नहीं करता। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, ‘मेरा मानना है कि न्याय का सबसे बड़ा उपहास यह है कि इन निर्णयों में पंथनिरपेक्षता को उचित स्थान नहीं दिया गया।’ न्यायमूर्ति नरीमन ने मस्जिद को ढहाये जाने को गैर कानूनी मानने के बावजूद विवादित भूमि प्रदान करने के लिए न्यायालय द्वारा दिए गए तर्क से भी असहमति जताई।
उन्होंने कहा, ‘आज हम देख रहे हैं कि देशभर में इस तरह के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं। हम न केवल मस्जिदों के खिलाफ बल्कि, दरगाहों के खिलाफ भी वाद देख रहे हैं। मुझे लगता है कि यह सब सांप्रदायिक वैमनस्य को जन्म दे सकता है।
इस सब को खत्म करने का एकमात्र तरीका यह है कि इसी फैसले के इन पांच पन्नों को लागू किया जाए और इसे हर जिला अदालत और उच्च न्यायालय में पढ़ा जाए। दरअसल, ये पांच पन्ने उच्चतम न्यायालय द्वारा एक घोषणा है जो उन सभी को आबद्ध करता है।’
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद पर फैसला सुनाया था। तब बेंच में तत्कालीन सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस एस बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ शामिल थे।
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