मुंबईः टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन और देश के सबसे प्रतिष्ठित बिजनेसमैन रतन टाटा नहीं रहे। मुंबई में उन्होंने आखिरी सांस ली । तीन दिनों से उनकी तबीयत खराब थी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था ।
रतन टाटा ने मुंबई के अंतिम सांस ली। कुछ दिन पहले उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वे आईसीयू में भर्ती थे। तीन दिन पहले भी उनके निधन की खबर आई थी, लेकिन बाद में उन्होंने खुद इस खबर को खारिज कर दिया था। सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए बताया था कि वे बिल्कुल स्वस्थ और तंदुरुस्त हैं। उनके निधन पर राजनीति, उद्योग और फिल्मी जगत की हस्तियों ने शोक व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रतन टाटा के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया। पीएम मोदी ने लिखा, “रतन टाटा एक दूरदर्शी बिजनेस लीडर, दयालु और असाधारण इंसान थे। उन्होंने भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित व्यापारिक घरानों में से एक को स्थिर नेतृत्व प्रदान किया। उनका योगदान बोर्डरूम से कहीं आगे तक फैला। उनकी विनम्रता, दयालुता और समाज को बेहतर बनाने के प्रति अटूट समर्पण के कारण वे बहुतों के प्रिय बन गए थे। रतन टाटा के सबसे अनूठे पहलुओं में से एक उनका बड़े सपने देखने और उन्हें साकार करने का जुनून था। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और पशु कल्याण जैसे मुद्दों के समर्थन में अग्रणी थे।”
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रतन टाटा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि विश्वास नहीं हो रहा
विश्वास नहीं हो रहा ….
मरांग बुरु रतन टाटा जी की आत्मा को शांति प्रदान करें। pic.twitter.com/9CfoiJf0bW
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) October 9, 2024
अपने आधिकारिक बयान में टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने कहा कि “रतन टाटा सचमुच असाधारण लीडर थे, जिनके अतुलनीय योगदान ने न केवल टाटा समूह को बल्कि हमारे राष्ट्र के ताने-बाने को भी आकार दिया है। वे टाटा समूह के लिए एक चेयरमैन से कहीं बढ़कर थे। हमारे लिए वे गुरु, मार्गदर्शक और मित्र थे। उनकी लीडरशिप में टाटा ग्रुप ने असाधारण विस्तार किया। वे हमेशा नैतिक मूल्यों के प्रति सच्चे बने रहे। उन्होंने परोपकार और समाज की भलाई के लिए हर क्षेत्र में गहरी छाप छोड़ी। शिक्षा हो या स्वास्थ्य, हर क्षेत्र में उनकी लीडरशिप का लाभ आने वाली पीढ़ियां उठाएंगी।”
रतन टाटा का पूरा नाम रतन नवल टाटा था। 28 दिसंबर 1937 को मुंबई में जन्मे रतन टाटा, नवल टाटा और सूनी कमिसारीट के बेटे थे। जब रतन टाटा 10 साल के थे, तब उनके माता-पिता अलग हो गए थे। इसके बाद उन्हें जेएन पेटिट पारसी अनाथालय के माध्यम से उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने औपचारिक रूप से गोद लिया। रतन टाटा का पालन-पोषण उनके सौतेले भाई नोएल टाटा (नवल टाटा और सिमोन टाटा के बेटे) के साथ हुआ।