झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी अभियुक्त को जमानत या सजा स्थगन का लाभ मिलने पर उसकी रिहाई में विलंब नहीं होना चाहिए। इस तरह के आदेश का त्वरित पालन करना अनिवार्य है। जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की अदालत ने गुरुवार को यह निर्देश दिया।
हाईकोर्ट ने क्या आदेश दिया ?
हाईकोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के 31 जनवरी 2023 के आदेश का उल्लेख करते हुए सभी निर्देशों का पालन करने पर जोर दिया है। इसके तहत जमानत आदेश की प्रति संबंधित न्यायालय द्वारा ईमेल के माध्यम से जेल अधीक्षक को उसी दिन या अगले दिन भेजी जाएगी, ताकि अभियुक्त तक आदेश तुरंत पहुंच सके। जेल अधीक्षक को यह सुनिश्चित करना होगा कि जमानत से संबंधित विवरण जेल के रिकॉर्ड या सॉफ्टवेयर में दर्ज किया जाए।
यदि जमानत आदेश के सात दिनों के भीतर अभियुक्त की रिहाई नहीं होती है, तो जेल अधीक्षक को संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डालसा) के सचिव को सूचित करना होगा, ताकि रिहाई के लिए आवश्यक कार्रवाई की जा सके।
जमानत पर मिली राहत
साथ ही, यदि एक माह के भीतर जमानत बांड प्रस्तुत नहीं किया जाता, तो जमानत की शर्तों में संशोधन या शिथिलता के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। हाईकोर्ट ने इन निर्देशों की प्रति सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों और जेल अधीक्षकों को भेजने का आदेश भी दिया है।
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क्या था पूरा मामला ?
यह मामला तब प्रकाश में आया जब एक अभियुक्त को जमानत मिलने के बावजूद सात वर्षों तक रिहा नहीं किया गया, क्योंकि उसने जमानत की शर्तें पूरी नहीं की थीं और जमानत बांड प्रस्तुत नहीं किया गया था। इस मामले में झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भी पक्षकार बनाया गया था।





