पटनाःनेताओं के करीबी आईएएस अधिकारी संजीव हंस पर ईडी का ने शिकंजा कसता दिया है। वह ईडी के रडार पर आए भी तो मधुबनी में डीएम रहते तत्कालीन राजद विधायक गुलाब यादव से अवैध आर्थिक साझेदारी के कारण ही। इसी मामले में शुक्रवार की शाम दोनों साझेदार संजीव हंस और गुलाब यादव को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया। मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने संजीव हंस को उनके पटना स्थित आवास से गिरफ्तार किया है। वही गुलाब यादव को दिल्ली स्थित एक रिसॉट से अरेस्ट किया गया है। में
संजीव हंस मधुबनी के बाद सीधे तत्कालीन केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के सचिव बनकर दिल्ली चले गए। वह पांच साल तक पासवान के निजी सचिव रहे। पंजाब का मूल निवासी होने का लाभ मिला। कहते हैं कि रामविलास पासवान का भरोसा जीतने में सफल रहे थे। बाद में किसी मामले को लेकर सरोकार में गांठ पड़ गई थी।
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भारतीय प्रशासनिक सेवा ( 1997 बैच) के अधिकारी संजीव हंस का स्वभाव विनम्र माना जाता है। उनको प्रबंधन में महारत हासिल है। जहां भी रहे, अपने प्रबंधन कौशल से सबको खुश रखने में कामयाब रहे। बिहार में कई विभागों में प्रमुख के तौर पर काम किया। इस कारण बिहार सरकार के कई मंत्रियों के साथ उनकी नजदीकियां रहीं।
अब भी सरकार में बैठे अनेक लोग उनके चाहने वाले हैं। सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री बातों-बातों में उनकी तारीफ करते नहीं अघाते। यहां तक कहते हैं कि चार्जशीट कहां हुई है, जबकि खुद मंत्रीजी की छवि साफ-सुथरी रही है। अभी ईडी की ओर से जिस मामले में कार्रवाई की जा रही है, उसके तार राजद के पूर्व विधायक गुलाब यादव से जुड़े हुए हैं।
आरोप है कि दोनों के बीच करोड़ों के अवैध लेनदेन हुए। मधुबनी में डीएम रहते संजीव हंस और झंझारपुर के तत्कालीन राजद विधायक गुलाब यादव एक-दूसरे के करीब आए। दोनों के सरोकार कारोबार तक जुड़ गए। दोनों के बीच अवैध कमाई का रिश्ता गहराता गया। इसी का हश्र है कि दोनों सलाखों के पीछे पहुंचा दिये गये।
संजीव हंस एक ऐसे अधिकारी रहे, जिन्हें अच्छी पोस्टिंग का कभी इंतजार नहीं करना पड़ा। रामविलास पासवान जब केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटे तो संजीव हंस बिहार लौट आए। यहां आते ही उन्हें बिहार राज्य पुल निर्माण निगम का अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद वे जल संसाधन विभाग में आए। गया और राजगीर में गंगा जल ले जाने वाली योजना संजीव हंस के समय ही अमल में आई। फिर ऊर्जा विभाग में आए। सरकार ने उन पर भरोसा जताते हुए ऊर्जा के साथ ही लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग की भी जिम्मेवारी दी।
ऊर्जा विभाग में इनके कार्यकाल में स्मार्ट प्रीपेड मीटर को रफ्तार मिली। ईडी की जांच में स्मार्ट मीटर लगाने वाली एजेंसी से कीमती उपहार लेने की भी चर्चा है। 16 जुलाई को इनसे जुड़े पांच ठिकानों पर छापेमारी के बाद से ईडी का शिकंजा कसता चला गया। पहली बार संजीव हंस किसी विभाग की जिम्मेदारी से पैदल हुए।
वे पदस्थापन की प्रतीक्षा में सामान्य प्रशासन विभाग से सम्बद्ध हैं। उनके सितारे गर्दिश में हैं। शायद सियासी सरोकार भी काम न आए। एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के यहां आए दिन छापेमारी प्रदेश के राजनीतिक गलियारे से नौकरशाही तक के चर्चा के केंद्र बनी हुई है।
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ईडी के पत्र में पद का दुरुपयोग कर करोड़ों की अवैध संपत्ति से जुड़े सभी साक्ष्य दिये गए हैं, जिसके आधार पर आय से अधिक संपत्ति (डीए) का मामला बनता है। दो दिन में यह पत्र राज्य की एसवीयू को प्राप्त हो गया। राज्य सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय के बाद इन दोनों के खिलाफ डीए केस में मुकदमा दर्ज किया गया है। जल्द ही ईडी कुछ और ठोस साक्ष्य प्रस्तुत कर सकती है।
आईएएस संजीव हंस और पूर्व विधायक गुलाब यादव के खिलाफ ईडी ने पहले ठोस सबूत इकट्ठा किए फिर दोनों गिरफ्तार किया। संजीव हंस और गुलाब यादव से जुड़े ठिकानों पर सबसे पहले 16 जुलाई को छापेमारी हुई थी, तब बिहार, दिल्ली, यूपी, पंजाब, पुणे के करीब दो दर्जन ठिकानों को खंगाला गया था। तीन-चार दिनों तक संजीव हंस के दिल्ली में रहने वाले साले, रिश्तेदारों और जमीन ब्रोकर के ठिकानों को खंगाला गया।
इलाहाबाद की महिला वकील ने इन दोनों पर दुष्कर्म समेत अन्य आरोप में नवंबर 2021 को केस दर्ज कराया था। इसमें महिला को फ्लैट-गाड़ी भी देने की बात कही गई थी। इसी को आधार बनाकर ईडी ने कार्रवाई शुरू की थी। जांच में बड़ा रैकेट सामने आया। पटना हाईकोर्ट ने महिला के स्तर से दर्ज कराई गई एफआईआर को निरस्त कर दिया था। उसके बाद 10 से 12 सितंबर तक संजीव हंस के करीबियों के यहां छापेमारी की गई थी।
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ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा- 66 (2) का प्रयोग करते हुए आईएएस संजीव हंस और पूर्व विधायक गुलाब यादव के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति में मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश राज्य सरकार से की थी। इसे लेकर ईडी मुख्यालय ने बिहार के डीजीपी और विशेष निगरानी इकाई के तत्कालीन एडीजी नैयर हसनैन खान को पत्र लिखा था। 13 पेज के इस पत्र में इन दोनों की अवैध संपत्ति से संबंधित पूरा ब्योरा था।
सभी साक्ष्य ईडी ने अपनी जांच के बाद पाया है। राज्य की एजेंसी को इन दोनों पर डीए की धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करना अनिवार्य हो गया। क्योंकि धारा-66(2) को लेकर कुछ वर्ष पहले सुप्रीम कोर्ट ने विजय मदन लाल चौधरी के एक मामले की सुनवाई में पारित आदेश में कहा था कि ईडी के स्तर से ऐसे साक्ष्य प्रस्तुत करने पर जांच एजेंसी को मुकदमा कर कार्रवाई करना अनिवार्य होगी।
राज्य सरकार को भेजे साक्ष्यों में ईडी ने आईएएस संजीव हंस के पास 20 करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्ति का उल्लेख किया था। ये संपत्तियां नोएडा, गुड़गांव, पंजाब समेत अन्य स्थानों पर हैं। इनके कई निजी ठेकेदारों से साठगांठ से जुड़े तथ्य भी प्रस्तुत किए गए हैं। संजीव हंस और गुलाब यादव के साथ उनकी पत्नी एमएलसी गायत्री देवी के साथ साझा कारोबार के प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं।
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