दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय में भारत की भाषाई विविधता का सम्मान करने की अपील की और महाराष्ट्र के अकोला ज़िले के पाटूर नगरपालिका की नई इमारत पर उर्दू भाषा के साइनबोर्ड के इस्तेमाल को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र लोक प्राधिकरण (राजभाषा) अधिनियम, 2022 में उर्दू के प्रयोग पर कोई रोक नहीं है और किसी अतिरिक्त भाषा के प्रदर्शन को कानून का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि भाषा का उद्देश्य केवल संवाद को प्रभावशाली बनाना है और देश की भाषाई विविधता का सम्मान आवश्यक है। बिहार की सियासत में हलचल! मुकेश सहनी छोड़ सकते हैं तेजस्वी का साथ, BJP से हुई गुप्त मुलाकात!
भारत के लिए उर्दू विदेशी नहीं
फैसले में न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि उर्दू कोई विदेशी भाषा नहीं है, बल्कि यह भी हिंदी और मराठी की तरह एक इंडो-आर्यन भाषा है, जो भारत में ही जन्मी और यहीं फली-फूली। विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के लोगों के बीच संवाद की आवश्यकता ने इस भाषा को जन्म दिया और शताब्दियों में यह समृद्ध होती गई। यह आज भी आम बोलचाल में प्रयुक्त होती है – अक्सर लोग जाने-अनजाने उर्दू शब्दों का प्रयोग करते हैं।
कोर्ट ने कहा कि हिंदी में भी उर्दू के कई शब्द शामिल हैं और उर्दू ने भी संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं से शब्द लिए हैं। दिलचस्प बात यह है कि अदालतों की भाषा पर भी उर्दू का गहरा प्रभाव है – ‘अदालत’, ‘हलफनामा’, ‘पेशी’, ‘वकालतनामा’, ‘दस्ती’ जैसे शब्द आज भी न्यायिक कार्यवाही का हिस्सा हैं।
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भाषा धर्म नहीं होती
कोर्ट ने साफ किया कि भाषा और धर्म को जोड़ना गलत है। भाषा किसी समुदाय, क्षेत्र या संस्कृति की होती है, न कि किसी धर्म की। भाषा सभ्यता की प्रगति की मापदंड होती है। उर्दू ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ की सबसे सुंदर मिसाल है, जो उत्तर और मध्य भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है।
क्या था पूरा विवाद
यह याचिका एक पूर्व नगरपालिका सदस्य ने दायर की थी, जिनका दावा था कि किसी भी रूप में उर्दू भाषा का उपयोग असंवैधानिक है। पहले यह याचिका पाटूर नगरपालिका द्वारा खारिज कर दी गई, जिसके बाद महाराष्ट्र नगर परिषद अधिनियम, 1965 के तहत अपील की गई थी। प्रारंभिक तौर पर इसमें केवल मराठी भाषा के उपयोग की बात कही गई, लेकिन बाद में अमरावती के संभागीय आयुक्त ने इस आदेश को रद्द कर दिया। इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2022 के अधिनियम के तहत यह आवश्यक है कि परिषद का कार्य मराठी भाषा में हो, लेकिन यह किसी अतिरिक्त भाषा के प्रयोग पर रोक नहीं लगाता। अतः केवल मराठी के अलावा उर्दू के उपयोग से कोई वैधानिक उल्लंघन नहीं होता।
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उर्दू से दोस्ती का संदेश
न्यायमूर्ति धूलिया ने मोलूद बेंज़ादी के एक उद्धरण से अपने फैसले की शुरुआत की – “जब आप कोई नई भाषा सीखते हैं, तो आप केवल बोलना और लिखना नहीं सीखते, बल्कि आप खुले विचारों वाले, सहनशील, दयालु और इंसानियत के प्रति संवेदनशील बनते हैं।” अंततः सुप्रीम कोर्ट ने संदेश दिया – “आइए उर्दू और हर भाषा से दोस्ती करें।”





