पटनाः जेल में बंद आईएएस अधिकारी संजीव हंस की मुश्किलें और बढ़ती जा रही है। प्रवर्तन निदेशालय ने अपने अभियोजन शिकायत में आरोप लगाया है कि जेल में बंद आइएएस अधिकारी संजीव हंस ने तत्कालीन खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री के निजी सचिव रहते राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से अनुकूल फैसला दिलवाने के एवज में मुंबई के एक रियल्टी फॉर्म से एक करोड़ रुपये रिश्वत ली थी।
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सूत्रों की मानें तो एजेंसी ने यह आरोप हंस के मित्र विपुल बंसल के स्वीकार नाम के आधार पर लगाया है। बंसल उस फर्म में कार्यरत थे और इस सौदा में बिचौलिया की भूमिका निभा रहे थे। उल्लेखनीय है कि एनसीडीआरसी उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के उपभोक्ता मामले के विभाग के तहत आता है। हंस उस समय केंद्रीय मंत्री के निजी सचिव के रूप में 3 जुलाई 2014 से 30 मई 2019 तक रहे थे।
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ईडी के आरोप पत्र के अनुसार, आएनए कॉर्प के पेरोल पर रहने वाले बंसल ने कथित तौर पर हंस और फर्म के प्रमोटर अनुभव अग्रवाल के बीच एक बैठक करवाई थी, ताकि अनुकूल फैसला आए और उनकी गिरफ्तारी को रोका जा सके।
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आरोप पत्र के अनुसार बंसल ने खुलासा किया है कि हंस ने बेंच के आदेश का अनुपालन करने और सारंगा आग्रवाल की गिरफ्तारी रद्द करने के लिए आरएनए कॉर्प के लि लिए एनसीडीआरसी बेंच से दो अलग-अलग तारीखों की व्यवस्था की। दो तारीखों के की व्यवस्था करने और अग्रवाल को गिरफ्तारी से बचाने के लिए एक करोड़ की कुल राशि संजीव हंस को दी गयी थी। ईडी के सूत्रों के अनुसार रिश्वत संजीव हंस के एक परिचित शादाद खान के माध्यम से भुगतान किया गया था, जिसका नंबर हंस ने खुद बंसल को दिया था।