चतरा: दूर जंगलों में एक गीत सुनाई दे रहा है ….
गाँवें गाँवें आई खुशहाली रोजगार से
सब के ई बात समझईह हो।
मोतियन के माला वाला बटम दबईहऽ
भईया श्रीराम के जितईह हो।
जंगल जमीन के बा लड़े के लड़ईया
मिली जुली सभे आगे अईहऽ हो।
इस गीत में मिठास है,मिट्टी की महक है और चतरा लोकसभा क्षेत्र के आदिवासियों-दलितों की कसक। इन जंगलों में कोई नहीं आता, ना प्रत्याशी और ना ही सरकार । फिर भी एक उम्मीदवार इस उम्मीद में चतरा के जंगलों-गांवों की खाक छान रहा है कि एक दिन बदलाव होगा । लोग बड़ी पार्टियों के चिन्ह और चेहरे को छोड़ उनका साथ देंगे जो उनके जैसा है । चतरा की जनता ने इस बार मुकाबला अगर राष्ट्रीय पार्टियों के चुनाव चिन्ह को छोड़ चेहरे पर किया तो निर्दलीय प्रत्याशी भारी पड़ सकते हैं। ऐसे ही एक निर्दलीय प्रत्याशी हैं श्रीराम डाल्टन । फिल्मकार से ज्यादा एक आंदोलनकारी ।
तपती गर्मी में पैदल प्रचार करते श्रीराम
ना गाड़ी ना घोड़ा और ना ही बीजेपी-कांग्रेस जैसे ‘रईस’ प्रत्याशियों की तरह आगे-पीछे चलने वाले लोग । पैदल ही चुनाव प्रचार कर रहे हैं श्रीराम । चंदवा,लातेहार, पांकी, मणिका, नेतरहाट के एक-एक गांव का नाम याद है श्रीराम को और इन गांवों का बच्चा -बच्चा श्रीराम औऱ उनकी पत्नी मेघा को जानता है । इसलिए जानता है क्योंकि श्रीराम की पत्नी गीत गाती हैं और श्रीराम प्रचार करते हैं । हाथ में तख्ती लिए श्रीराम मिलों चलते हैं । चालीस बयालीस डिग्री तापमान में सड़कों से गुजरने वाले रईस प्रत्याशियों का काफिला देख घमंड की हंसी हंसता कहता है ये श्रीराम जीतेंगे चुनाव ?
मिसाल बन चुके हैं निर्दलीय प्रत्याशी श्रीराम डाल्टन
राजनीति में जहां सत्ता का चरित्र विलासिता वाला हो चुका है उन हालातों में श्रीराम जैसे प्रत्याशियों का चुनाव में खड़ा होना ही लोकतंत्र की ताकत दिखाता है । किसी पार्टी का सिंबल भले ही नहीं मिला हो लेकिन इलाके की जनता उन्हें अपने दिलों में बसाती है इसीलिए देर रात किसी भी गांव में श्रीराम और मेघा डेरा डाल लेते हैं और शुरु हो जाता है गीत गाने का सिलसिला । कभी बिरसा पर तो कभी चुनावी गीत । फिर रात वहीं गुजरती है। वहीं भात और पानी खाते हैं और निकल जाते हैं दूसरे गांव की ओर । पैदल ही चलते हैं । श्रीराम लोगों से बातें करते हैं, हैरान होते हैं लोग । मन में जिस भी पार्टी का सिंबल बसा हो उसे निकाल श्रीराम की मोतियों के हार वाले सिंबल को जगह देने की सोचते तो जरुर हैं। शायद गरीबी और पिछड़ेपन के दंश से दशकों से पीड़ित इस इलाके को ऐसे ही जज्बे वाले सांसद की जरुरत है ऐसा ही सोचते हैं लोग ।
चतरा में इस बार भारी पड़ेंगे निर्दलीय प्रत्याशी ?
चतरा में इस बार मुकाबला दिलचस्प है । बड़ी पार्टियों के प्रत्याशी कालीचरण सिंह और केएन त्रिपाठी को सबसे ज्यादा डर निर्दलीय प्रत्याशियों से ही है । डॉक्टर अभिषेक सिंह भी इसी रेस में शामिल हैं जो लगातार तीन सालों से इस इलाके में प्रचार कर रहे हैं तो दूसरी ओर श्रीराम सिंह दस वर्षों से लातेहार में अपनी पकड़ मजबूत बना चुके हैं। हांलाकि प्रचार और प्रसार के इस जमाने में कई बार छुपा रुस्तम भी कमाल कर देता हैं ।
मेघा और मीनाक्षी पति के लिए कर रही हैं प्रचार
चतरा लोकसभा सीट पर इस बार निर्दलीय प्रत्याशी डॉक्टर् अभिषेक सिंह भी चुनौती देते हुए नजर आ रहे हैं। उनके साथ पूरी टीम काम करती हुई नजर आ रही है जो पूरे चुनाव प्रचार में चप्पे-चप्पे पर पहुंचने की कोशिश करती हुई नजर आई। उनके साथ भी उनकी पत्नी डॉक्टर मीनाक्षी हर गांव में घूम-घूम कर प्रचार करती हुई दिखी।
इस बार चतरा में एक बार श्रीराम सिंह की पत्नी मेघा श्रीराम चुनाव मैदान में साथ देती हुई नजर आ रही हैं तो डॉक्टर अभिषेक सिंह की पत्नी भी चुनावी मैदान में पति अभिषेक सिंह के साथ कदमताल करती हुई दिखीं ।
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