रांची: चमगादड़ मर रहे हैं । आग उगलते आसमान और झुलासने वाली गर्मी ने इंसानों क्या चमगादड़ों की जिंदगी भी तबाह कर दी है । पलामू-चतरा और लातेहार में सबसे ज्यादा चमगादड़ों की मौत की खबरें आ रही हैं । तस्वीरों में चमगादड़ के शव सैकड़ों की तादाद पेड़ों के नीचे नजर आना आम बात हो गई है ।
चमगादड़ों की मौत , अनिष्ट का संकेत
चमगादड़ों की मौत लोगों के अंधविश्वास को और मजबूत कर रही है । लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। किसी को अनिष्ट की आशंका सता रही है तो किसी को अशुभ समाचार आने की । खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में लोग तो चमगादड़ों की मौत को लेकर तरह-तरह के अंधविश्वास को हवा दे रहे हैं।
क्या है वैज्ञानिक कारण
सवाल यह चमगादड़ों की मौत की वजह क्या किसी तरह के अनिष्ट का संकेत है या फिर इसके पीछे कोई वैज्ञानिक वजह है । इस सवाल का जवाब वैज्ञानिक तरीके से ही ढूंढना जरुरी होगा क्योंकि मौत के पीछे वजह भी शुद्घ रुप से वैज्ञानिक है । भारत में फल खाने वाले चमगादड़ मिलते हैं और लगभग 40 डिग्री सेल्सियस तापमान को सहन कर सकते हैं। हालांकि, 42°C तक वे तापमान सहन कर सकते हैं। अत्यधिक तापमान उन्हें मौत के मुंह में धकेल सकता है । इसीलिए जिन इलाकों में चमगादड़ की मौत हो रही हैं वहां का तापमान निश्चित तौर से 42°C से अधिक चला गया होगा ।
चमगादड़ों की मौत से हमारी सेहत पर क्या असर?
अब सवाल ये उठता है कि चमगादड़ों की बड़ी संख्या में मृत्यु से से इंसानों की सेहत पर क्या असर पड़ेगा । इसका जवाब है बुरा असर पड़ सकता है क्योंकि पारिस्थितिक असंतुलन और जूनोटिक बीमारियों के प्रसार में वृद्धि हो सकती है। फल खाने वाले चमगादड़ बीज प्रसार और परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो कई पौधों की प्रजातियों के लिए आवश्यक है। उनकी जनसंख्या में कमी से बीज प्रसार और परागण में गिरावट हो सकती है, जिससे पारिस्थितिक असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
इसलिए है चमगादड़ बचाना जरुरी
इसके अलावा, कीड़े खाने वाले चमगादड़ बड़ी मात्रा में कीड़ों का उपभोग करके कीट नियंत्रण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। उनकी जनसंख्या में कमी से कीड़ों की अनियंत्रित जनसंख्या हो सकती है, जिससे कृषि और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
शहरी क्षेत्रों में चमगादड़ों की मौत जूनोटिक जोखिम भी पैदा करती है। चमगादड़ कई वायरसों के होस्ट होते हैं, और यदि उनके शव घरेलू जानवरों और मनुष्यों के संपर्क में आते हैं, तो बीमारियों के प्रसार की संभावना बढ़ जाती है।