रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की मतगणना 23 नवंबर को होने जा रही है। इसमें करीब 17 सीटों पर कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। इनमें दो से तीन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति है। इन सीटों पर हार और जीत ही तय करेगी कि झारखंड में अगली सरकार किसकी बनेगी।
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मतदान खत्म होने के बाद कड़े मुकाबले में फंसी सीटों को लेकर सियासी गलियारे में बेचैनी बढ़ी हुई है। बीजेपी और जेएमएम की ओर से अपने अपने दावें किये जा रहे है। झारखंड के अलग अलग विधानसभा क्षेत्रों से मिली ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार गढ़वा, हटिया, जमशेदपुर पश्चिम, सारठ, चंदनकियारी, डुमरी, बेरमो, बड़कागांव, जामताड़ा, जामा, नाला, महगामा, बोकारो, पांकी, विश्रामपुर, कोडरमा और भवनाथपुर में कांटे का मुकाबला माना जा रहा है। इन सीटों में माना जा रहा है कि हार का अंतर कम हो सकता है। एनडीए और इंडिया अलाइंस दोनों ओर से अपनी काउंटिंग को लेकर अपनी तैयारी के साथ साथ अंतिम समय तक मतगणनाकेंद्र पर डटे रहने के निर्देश दिया गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गुरूवार को जेएमएम उम्मीदवारों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक की तो वही बाबूलाल मरांडी ने विधानसभा प्रभारियों के साथ बैठक कर काउंटिंग के समय डटे रहने का निर्देश दिया।
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जानिये इन 16 सीटों पर क्यों है कांटे का मुकाबला
गढ़वाः पलामू प्रमंडल की ये सबसे हॉट सीट है। इस सीट पर मंत्री मिथिलेश ठाकुर जेएमएम उम्मीदवार के रूप में है और उनके सामने एक बार फिर बीजेपी की ओर से सतेंद्रनाथ तिवारी है। लेकिन इस सीट पर पूर्व विधायक गिरिनाथ सिंह ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में त्रिकोणीय मुकाबला बनाने की कोशिश की है। माना जा रहा है कि गिरिनाथ सिंह को आये वोट ही तय करेंगे कि गढ़वा में जेएमएम और बीजेपी उम्मीवार में किसकी जीत होगी, अगर गिरिनाथ सिंह को 20 हजार से ज्यादा वोट मिले तो मिथिलेश ठाकुर का जीतना मुश्किल हो जाएगे। 2019 के चुनाव में गिरिनाथ सिंह चुनाव मैदान से बाहर थे तो मिथिलेश ठाकुर ने इस सीट पर बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी।
हटिया: रांची जिले के शहरी सीट हटिया पर कांग्रेस उम्मीदवार अजय नाथ शाहदेव और बीजेपी उम्मीदवार नवीन जायसवाल के बीच कांटे का मुकाबला है। निर्दलीय भरत कांशी के प्रदर्शन और सेंधमारी पर चुनाव परिणाम टिका हुआ है।
सारठः संथाल की इस सीट पर पूर्व मंत्री और बीजेपी उम्मीदवार रणधीर सिंह और जेएमएम के उम्मीदवार चुन्ना सिंह के बीच हार-जीत का अंतर कम बताया जा रहा है। दोनों उम्मीदवार ने चुनाव प्रचार के आखिर तक पूरा जोर आजमाइश किया। इस सीट पर जीत और हार संथाल परगना में सरकार और गठबंधन की स्थिति मजबूत कर सकती है।
डुमरीः गिरिडीह जिले के अंदर आने वाले डुमरी सीट पर दिवंगत जगन्नाथ महतो का दबदबा रहा है। टाइगर जगन्नाथ महतो के निधन के बाद उनकी मंत्री और सरकार में मंत्री बेबी देवी इस सीट से जेएमएम की उम्मीदवार है और उनको जेएलकेएम के प्रमुख जयराम महतो से कड़ी चुनौती मिली है। जेएमएम के इस गढ़ में सेंधमारी करने की जयराम महतो ने पूरी कोशिश की है, हालांकि आजसू उम्मीदवार के रूप में यशोदा देवी ने भी मुकाबला त्रिकोणीय करने की अपनी ओर से कोशिश की है।
जमशेदपुर पश्चिमः कोल्हान के इस प्रमुख सीट पर पूर्व मंत्री और जेडीयू उम्मीदवार सरयू राय का मुकाबला मंत्री बन्ना गुप्ता से है। दोनों एक दूसरे के परंपरागत विरोधी रहे है, 2019 में सरयू राय ने जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव लड़ा था जहां उन्होने तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को शिकस्त दी थी। इस बार वो जेडीयू उम्मीदवार के रूप में वापस अपनी पुरानी सीट पर लौटे है और यहां कांग्रेस उम्मीदवार बन्ना गुप्ता को उन्होने कड़ी टक्कर दी है।
चंदनकियारी: बोकारो जिले के अंदर आने वाली इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार और नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी की प्रतिष्ठा दांव पर है। बीजेपी के लिए ये सीट साख का सवाल है तो जेएमएम ने इस सीट पर आजसू के प्रमुख स्तंभ रहे उमाकांत रजक को अपना उम्मीदवार बनाया है। पूर्व विधायक उमाकांत रजक इस सीट पर आजसू उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते रहे है लेकिन इस बार उन्होने पाला बदल लिया है। यहां जेएलकेएम के उम्मीदवार कितना और किसका वोट कांटते है ये तय करेगी की इस सीट पर किसकी जीत होगी।
बेरमोः बोकारो जिला के अंतर्गत आने वाला ये दूसरी सीट है जहां कांटे का मुकाबला माना जा रहा है। कोयला क्षेत्र के इस प्रमुख सीट पर जेएलकेएम सुप्रीमो जयराम महतो ने चुनाव मैदान में उतरकर इसे हॉट बना दिया। पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह की पारंपरिक सीट पर इस बार उनके बेटे जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह एक बार फिर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में मैदान में है। बीजेपी ने कोयला क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूर्व सांसद रविंद्र पांडे को उम्मीदवार बनाया है लेकिन माना जा रहा है कि इस सीट पर जयराम महतो और जयमंगल सिंह के बीच कांटे का मुकाबला है।
बड़कागांव: इस सीट पर दो राजनीतिक परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर है। कांग्रेस की ओर से इस सीट पर विधायक अंबा प्रसाद एक बार फिर चुनाव मैदान में है वही बीजेपी की ओर से रौशन चौधरी उम्मीदवार है। इस सीट पर अंबा प्रसाद के परिवार का कब्जा रहा है, अंबा के पिता और पूर्व मंत्री योगेंद्र प्रसाद इस सीट से लगातार जीतते रहे है इसके बाद अंबा प्रसाद की मां निर्मला देवी इस सीट से विधायक बनी और 2019 में अंबा ने इस सीट पर अपने परिवार का कब्जा बरकरार रखा। वही दूसरी ओर बीजेपी ने गिरिडीह से सांसद और आजसू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंद्रप्रकाश चौधरी के भाई को उम्मीदवार बनाया है। चंद्रप्रकाश की पत्नी सुनीता चौधरी रामगढ़ सीट से विधायक है और आजसू उम्मीदवार भी है। योंगेंद्र साव और चंद्रप्रकाश चौधरी के परिवार में राजनीति वर्चस्व के लिहाज से ये सीट महत्वपूर्ण है।
जामताड़ा: कभी दिशोम गुरू शिबू सोरेन के लिए अपनी सीट छोड़ने वाले भूमिहार जाति के बड़े नेता रहे विष्णू भैया की कब्जे में रहने वाली इस सीट पर इस बार शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन और पूर्व सांसद फुरकान अंसारी के बेटे इरफान अंसारी के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है। इंडिया गठबंधन के लिए आसान सीट माने जाने वाली संथाल परगना की इस सीट पर बीजेपी ने सीता सोरेन को उम्मीदवार बनाकर इरफान अंसारी की राह मुश्किल कर दी। सीता सोरेन को लेकर कथित बयान ने इरफान की राह में रोड़े डाल दिये। कांग्रेस और बीजेपी उम्मीदवार ने अपनी ओर से इस सीट पर पूरा दमखम दिखाया, ये सीट कांग्रेस पार्टी के ग्राफ को प्रभावित कर सकता है।
जामाः संथाल परगना की जामा विधानसभा सीट पर इस बार जेएमएम की ओर से सीता सोरेन की जगह रघुवर दास की सरकार में मंत्री रही लुईस मरांडी इंट्री ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया। जेएमएम की परंपरागत सीट रही जामा सीट पर बीजेपी ने सुरेश मुर्मू को उम्मीदवार बनाया। पहली बार सीट पर इतना कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है।
महगामाः गोड्डा जिले के अंतर्गत आने वाली ये सीट संथाल परगना में बीजेपी और कांग्रेस का ग्राफ बदल सकता है। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में मंत्री दीपिका पांडे सिंह का मुकाबला बीजेपी के अशोक कुमार भगत से है। बीजेपी की ओर से इस सीट पर कई अन्य दावेदार भी थे लेकिन टिकट बाबूलाल मरांडी के करीबी रहे अशोक भगत को मिली। इस सीट पर सवर्ण मतदाता निणार्यक माने जा रहे है। बीजेपी और कांग्रेस की ओर से पूरी जोर आजमाइश की गई है।
बोकारोः बीजेपी के लिए कमजोर कड़ी बने उम्मीदवार बिरंची नारायण और कांग्रेस के लिए मजबूत उम्मीदवार रही श्वेता सिंह के बीच इस सीट पर कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। 2019 का चुनाव बेहद कम वोट से हारने वाली श्वेता सिंह इस बार फिर बिरंची को कड़ी चुनौती दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा से पहले पिछड़े बिरंजी नारायण ने अंत तक अपनी ओर से पूरा दमखम लगाया। बेहतर बूथ प्रबंधन और ग्रामीण क्षेत्रों में मिले वोट इस सीट पर हार और जीत तय करेगी।
नाला: संथाल परगना की नाला विधानसभा सीट जेएमएम की परंपरागत सीट रही है। इस सीट पर इस बार सबसे अधिक 80 फीसदी वोटिंग हुई है। बढ़े वोटिंग प्रतिशत ने तमाम समीकरण को बदल दिया है। जेएमएम की ओर से इस सीट पर विधानसभा अध्यक्ष रविंद्रनाथ महतो को बीजेपी के उम्मीदवार माथव महतो से कड़ी चुनौती मिली है।
भवनाथपुर: गढ़वा जिले के अंतर्गत आने वाली इस दूसरी सीट पर भी जेएमएम और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला है। बीजेपी की ओर से पूर्व मंत्री और विधायक भानूप्रताप शाही और जेएमएम उम्मीदवार के रूप में अनंत प्रताप देव के बीच कांटे का मुकाबला है। दोनों ओर से सभी दांवपेंच लगाये गए है, इस सीट पर राजनीतिक तापमान को भांपना आसान नहीं है इसलिए ये सीट को लेकर दोनों पार्टियां और गठबंधन तनाव में है।
विश्रामपुरः पलामू प्रमंडल की इस प्रमुख सीट पर बीजेपी उम्मीदवार के रूप में एक बार फिर पूर्व मंत्री और विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी बढ़ती उम्र के बाद भी चुनाव मैदान में उतरे थे उनको आरजेडी उम्मीदवार नरेश सिंह और बीएसपी उम्मीदवार राजन मेहता ने कड़ी टक्कर दी है। इस सीट पर कई ऐसे उम्मीदवार खड़े थे जो प्रमुख दोनों दलों के वोट में सेंधमारी कर रहे थे। वोटकटवा उम्मीदवार कहे जाने वाले उम्मीदवार की ताकत ही तय करेगी कि इस सीट पर किसकी जीत होगी और किसकी हार।
पांकी: पलामू प्रमंडल की इस सीट पर चुनाव परिणाम चौका सकता है। भारी नाराजगी के बाद भी बीजेपी ने इस सीट पर वर्तमान विधायक कुशवाहा शशिभूषण मेहता को उम्मीदवार बनाया था। वही कांग्रेस ने लालसूरज को पूर्व विधायक देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू सिंह का टिकट काटकर उम्मीदवार बनाया। बिट्टू सिंह के निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने से नया कोण बना जिसके बाद हार और जीत को लेकर अनुमान लगाना मुश्किल हो गया।
कोडरमा: बिहार से सटे इस सीट पर बीजेपी ने एक बार फिर विधायक और पूर्व मंत्री नीरा यादव को उम्मीदवार बनाया। लेकिन इस बार उन्हे निर्दलीय उम्मीदवार शालनी गुप्ता और आरजेडी उम्मीदवार सुभाष यादव से कड़ी टक्कर मिली। सुभाष यादव के जेल से बाहर आने के बाद इस सीट पर समीकरण बदल गया, लालू यादव ने तबीयत खराब होने के बाद भी सुभाष के लिए चुनाव प्रचार किया। वहीं 2019 का चुनाव हारने के बाद भी मैदान में डटी रही शालनी गुप्ता ने दोनों पार्टियों उम्मीदवार की नींद हराम कर दी। माना जा रहा है कि इस त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी कही पिछड़ गई और निर्दलीय उम्मीदवार से आरजेडी को टक्कर मिली। इस सीट पर हार और जीत आरजेडी और इंडिया गठबंधन के आंकड़े बढ़ा और घटा सकते है।