रांची: झारखंड के जंगलों में बसे हजारों लोगों की प्यास ऐसे ही बूझती है । गिनती कीजिए । आधी आबादी पहाड़ से उतर चूआं का पानी इकट्ठा कर रहा है ताकि बिन पानी मौत ना हो जाए । आजादी के 75 वर्षों बाद । झारखंड में अबुआ राज आने के बाद । सुदेश महतो के इलाके में । हेमंत सोरेन सरकार की राजधानी से महज़ तीस किलोमीटर दूर रांची में पानी की यही व्यवस्था है । गीता-सीता-कुंती-वीणा, मंगरी-बुधनी सबकी जिंदगी पहाड़ से उतर चुआं तक पहुंचने और चुआं से घर तक में खत्म हो जा रही है । सरकार ने हर घर में नल से जल की व्यवस्था की हकीकत देखनी है तो झारखंड की राजधानी रांची के सिल्ली विधानसभा के होड़ाडीह पंचायत के हेसाडीह गांव में पहुंचिए । सुबह से शाम तक औरतें चुआं यानी प्राकृतिक तौर से जमा होने वाले पानी तक पहुंचती है और फिर घर में जो भी बर्तन है उसमें भर कर वापस अपनी रसाई में जाती है तब पकता है खाना-बुझती है प्यास
सिल्ली के सिर्फ हेसाडीह गाँव का ऐसा हाल नहीं है । गोडाडीह पंचायत के ठुंगररुडीह गाँव के लोगों का भी यही हाल है। पिछड़ेपन के अँधेरे में डूबे इस गांव की औरतें भी इसी तरह हर दिन सुबह मुँह अंधेर उठ पानी के इंतज़ाम में लग जाती हैं। गांव के उपर टोला के लोग डांड़ी या चुआं का पानी पीने को विवश है। इस गाँव में 40 परिवार रहते हैं जिनकी आबादी लगभग दो सौ हैं । सोलर-जलमीनार की भी व्यवस्था की गई हे लेकिन रांच महीने में ही जलमीनार बन कर ख़राब हो चुका है । अब गांवों को हर दिन सिर उठा मुँह चिढ़ाता है ।
रांचीः सिल्ली के ठुंगरुडीह और हेसाडीह गांव का हाल देखिये
आदिवासी बहुल गांव में नहीं पहुंचा नलजल
दुर्गम रास्ते से कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी भरने आती है महिलाएं@HemantSorenJMM @DC_Ranchi @JharkhandCMO @SudeshMahtoAJSU @JairamTiger @TigerJairam1932 @JmmJharkhand @Jmm_Mahila… pic.twitter.com/cCrXs7aLeS
— Live Dainik (@Live_Dainik) May 22, 2025
अबुआ सरकार हो या फिर दिल्ली की मोदी सरकार । स्थानीय विधायक अमित महतो हों या पूर्व विधायक सुदेश महतो । लोकसभा के सांसद संजय सेठ हो । वोट का दिन आएगा तो गाँव-गांव वायदों की पोटली ले नेता घूमते नज़र आते हैं और जीतने के बाद जनता को जिस तरीके से पहाड़ से नीचे पानी लाने के लिए धकेल देते हैं इसकी मिसाल है सिल्ली के कई पंचायत । रांची में बारिश खूब हो रही है । गर्मी में भी नेताओं के मकान-दुकान-घर-बार सब तर हैं लेकिन जिनकी बदौलत इनके गले से मिनरल वाटर से नीचे कुछ उतरता नहीं उनके ना तो गले की चिंता है और ना ही प्यास की । साल दर साल इसी तरह से हर गर्मी में झारखंड के ग्रामीण इलाकों की महिलाएं अपना आधा वक्त पानी के इंतज़ाम में ही लगा देती हैं मगर देखने वाला कोई नहीं । मंईयां का सम्मान नकदी देने में नहीं बल्कि उनके किचन तक पानी पहुंचाने में ही सीएम साहब ।