रांची: पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शुक्रवार को बीजेपी की सदस्यता एक बार फिर से ली। सदस्यता ग्रहण समारोह का रंग फीका क्यों रहा इसको लेकर हर तरफ चर्चा हो रही है। ओडिशा के राज्यपाल का पद त्यागने के बाद झारखंड की राजनीति में वापसी करने वाले रघुवर दास अपनी ज्वाइनिंग बीजेपी में भव्य करना चाह रहे थे लेकिन आलाकमान की बेरूखी ने पूरे शो को फ्लॉप कर दिया।
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बीजेपी के सूत्र बताते है कि पार्टी आलाकमान झारखंड में रघुवर दास की इंट्री से बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं है। वो नहीं चाहते थे कि रघुवर दास झारखंड की सक्रिय राजनीति में लौटे लेकिन रघुवर दास की जिद्द के आगे उन्होने भी अपने हाथ खड़े कर दिये और रघुवर दास ने आखिरकार बीजेपी की सदस्यता शुक्रवार को ले ली। उनके सदस्यता ग्रहण कार्यक्रम के दौरान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के अलावा कोई भी बड़ा नेता शामिल नहीं हुआ। प्रदेश प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेयी इस पूरे कार्यक्रम में दौरान गैर हाजिर रहे, यही नहीं रांची में रहने के बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने भी इस समारोह से दूरी बनाये रखी।
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झारखंड के दो पूर्व मुख्यमंत्री के बीजेपी की सदस्यता लेने के दौरान भव्य मिलन समारोह हुआ था। 2019 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद जब पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी की सदस्यता ली थी तो रांची में कार्यक्रम के दौरान गृह मंत्री अमित शाह मौजूद रहे थे, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने जब बीजेपी की सदस्यता ली थी तो उस वक्त झारखंड बीजेपी के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हेमंता बिस्व सरमा जैसे बड़े नेता इसमें शामिल हुए थे। यही नहीं जब पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की बहू गीता कोड़ा ने बीजेपी का दामन थाना था तो पूरे तामझाम के साथ उनकी ज्वाइनिंग हुई थी।
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बीजेपी के सूत्र बताते है कि रघुवर दास के झारखंड की राजनीति में लौटने की जिद्द ने उन्हे पार्टी आलकमान से दूर कर दिया। रघुरव दास 2024 के विधानसभा चुनाव से पहले अपनी झारखंड की राजनीति में वापसी चाहते थे लेकिन पार्टी आलाकमान इसके लिए तैयार नहीं था। जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव लड़ने पर अड़े रघुवर दास को शांत करने और चुनाव से पहले कोई नया विवाद नहीं खड़ा होने के डर से बीजेपी ने रघुवर दास की बहू को जमशेदपुर पूर्वी से टिकट दे दिया। जब विधानसभा चुनाव में बीजेपी की बुरी तरह से हार हुई तो पार्टी के आलाकमान ने ये आंकलन किया कि कही न कही पार्टी के अंदर जारी गुटबाजी और स्थानीय नेताओं की महत्वाकांक्षा ने पार्टी की हालत खराब कर दी। इसके बाद जब कई राज्यों में राज्यपाल बदलने की बारी आई तो रघुवर दास को ओडिशा के राज्यपाल पद से हटा दिया और कथित तौर पर पहले दिये गए उनके इस्तीफे को स्वीकार कर दिया। इसके बाद रघुवर दास के झारखंड की राजनीति में वापस आने का रास्ता साफ हो गया। 2029 तक झारखंड की राजनीति में सत्ता का कोई बड़ा बदलाव नहीं होना है इसके बावजूद रघुवर दास झारखंड की राजनीति में कोई करिश्मा कर पाएंगे इसकी संभावनाएं कम नजर आती है, फिर भी उन्हे झारखंड की सक्रिय राजनीति में आने दिया गया। पार्टी के अंदर अब दो पदों के लिए लड़ाई जारी है एक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और दूसरा बीजेपी के नये अध्यक्ष की जोर आजमाइश। नेता प्रतिपक्ष के रूप में बाबूलाल मरांडी का दावा मजबूत माना जा रहा है वहीं प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी किसी नये चेहरे पर दांव खेल सकती है ऐसी संभावनाएं जताई जा रही है ऐसे में रघुवर दास झारखंड की वर्तमान राजनीति में कितने प्रशंगिक होंगे ये आने वाले वक्त में पता चलेगा।