दिल्ली..देश चुनावी मोड में है। सियासत चरम पर है और इधर शेयर बाजार में बड़ा खेल चल रहा है । नोटबंदी के ठीक दूसरे दिन पीएम मोदी के नाम फुल पेज विज्ञापन दे विवादों और सुर्खियों में आई paytm बर्बादी के कगार पर है । पेटीएम के शेयरों में ताबड़तोड़ बिकवाली जारी है। समाचार के लिखे जाने तक कंपनी के शेयर करीब 50 प्रतिशत से ज्यादा टूट चुके हैं। आरबीआई द्वारा पेटीएम बैंक के परिचालन पर 29 फरवरी के बाद प्रतिबंध लगाने के आदेश के बाद से ही पेटीएम सुर्खियों में है। आरबीआई के मुताबिक कंपनी ने लगातार चेतावनी देने के बाद भी नियामक द्वारा कंप्लायंस जैसे केवाईसी नियमों को पूरी तरह से पालन नहीं किया है और आरबीआई के दिशानिर्देशों को नजरअंदाज करती रही है। इससे मजबूर होकर यह कदम उठाना पड़ा है। अब सवाल ये उठता है कि पेटीएम को नुकसान हो रहा है तो फायदा किसे होगा । आर्थिक जगत की बड़े अखबारों की माने तो जियो फिनांसियल की नजर पेटीएम पर है । चर्चा तो ये भी है कि अंबानी की कंपनी पेटीएम को खरीद भी सकती है ।
RBI पर सवाल
आरबीआई ने paytm पर यह कार्रवाई ऑडिट के बाद की गई हैं। हालांकि कोई भी निश्चित नहीं है कि उन्हें क्या मिला। मुख्य बात यह है कि इससे वॉलेट, फास्टैग और नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड में सभी जमा संचालन बंद करना पड़ा है। इसमें कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं-सबसे बड़ा सवाल तो यह कि क्या आरबीआई स्वयं फिनटेक सेक्टर को समझती है और उसके विनियमन करने के योग्य है। पेटीएम पर फैसला लेते हुए उसने मर्चेट और ग्राहको के हितो का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा है।
ऐसा पहली बार नही है कि आरबीआई ग्राहकों और कारोबारियों के हितों का ध्यान रखने मे पूरी तरह फेल हुई है।कुछ साल पहले सब्सक्रिप्सन आधारित सेवाओं में ई-मैंडेट के केस में भी आरबीआई ने ऐसा ही बेतुका कदम उठाया था। इससे भी बिजनेस हित प्रभावित हुए थे।आज भी आरबीआई डिजिटल पेमेंटस सेवा प्रदाताओं पर कई तरह के लाईसेंसिंग का बोझ डाला हुआ है।आरबीआई के कई कदमों से तो ऐसा लगता है कि वह डिजिटल पेमेंट को ठीक से समझती भी है कि नहीं। पेटीएम जैसे कई सर्विस प्रोवाईडर सिर्फ बैंको को कनेक्ट करते हैं। इसलिए ये बड़े आराम से बैंको के द्वारा ही निर्देशित हो सकते हैं।
क्या यह कुछ और मामला लगता है
मामले के जानकार कई लोग यह सवाल उठाते हैं कि पेटीएम पहले से ही पिछले ऑडिट रिपोर्ट के अनुपालन कर रही थी। सूत्रों के मुताबिक कंपनी ने 80 प्रतिशत से ज्यादा कंप्लायंस तो कर लिया था। कंपनी के कर्मचारी दिनरात इस काम में लगे हुए थे। अगला ऑडिट रिपोर्ट 2-3 महीने में होने वाला था जिसमें उम्मीद थी कि कंपनी से बहुत सारे प्रतिबंध हट जाते। तो क्या आरबीआई को 2.3 महीने इंतजार नहीं करना चाहिए था। आखिर इतनी हड़बड़ी क्यों है।
पेटीएम को बर्बाद करके आखिर सरकार को क्या मिलेगा। इससे किसे फायदा होगा ?
हर जगह जियो फाईनेंशियल के ऐड सोशल मीडिया पर चल रह हैं। कंपनी डिजिटल लेंडिंग में जल्द ही उतरने की तैयारी कर रही है।
पहले भी ऐसा हुआ है। जियो टेलिकॉम की एंट्री के बाद सारे मोबाईल सेवा प्रदाता समाप्त हो गए। क्या यह महज एक स्पेकुलेशन भ है। पेटीएम भारतीय उद्यमिता की सबसे सशक्त पहचान मानी जाती है। जियो फिनांसियल के शेयर मार्केट में चढ़ रहे हैं ।
paytm का दावा है कि एक सेकेंड में वो 9 हजार ट्रांजेक्शन कर सकती है जबकि देश के किसी भी बैंक के पास एक साथ इतनी यूपीआई ट्रांजेक्शन की क्षमता नहीं है । बहरहाल paytm की बर्बादी क्या सोची समझी रणनीति के तहत है । और क्या देश का विपक्ष भी इसे खेल को समझने में विफल रहा । इन तमाम सवालों के जवाब आने वाले वित्तीय वर्ष में मिल सकते हैं । अगर अंदेशा सच हुआ तो देश में एकाधिकार को बल मिलेगा जिसका नुकसान स्टार्टअप कंपनियों को हो सकता है ।
विकास कुमार