रांची: जयराम महतो और उनके सहयोगी भले ही लोकसभा चुनाव में एक भी सीट जीत नहीं पाई हो लेकिन इस चुनाव में उन्होने अपने ताकत से सभी का ध्यान खींचा है। राजनीति में जिस तरह से जयराम ने इंट्री ली है वो आजसू के लिए खतरें की घंटी है। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में जयराम राज्य की राजनीति में एक बड़ा फैक्टर बनकर उभरेंगे। जयराम की बढ़ती लोकप्रियता सुदेश महतो की सियासी जमीन हिला रही है।
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JBKSS बनाम AJSU
जयराम की राजनीति उसी लाइन और उसी वोट बैंक की है जो अबतक सुदेश महतो की रही है। लोकसभा चुनाव में एक सीट जीतकर आई आजसू को अब जयराम चुनौती दे रहे है वो भी उस मामले को लेकर जो आजसू की पुरानी मांग रही है। जयराम ने अपने संगठन जेबीकेएसएस के सोशल मीडिया प्लेटफॉम एक्स पर झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग के बहाने आजसू प्रमुख सुदेश महतो को घेरा है। एक्स पर किये गए पोस्ट में लिखा है कि 2013 से झारखंड को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की लड़ाई लड़ रहे आजसू के नेता संसद में भी खड़े होकर इस मांग को सदन के पटल पे रखेंगे, ऐसी उम्मीद हम सभी झारखंडवासी करते है। विगत 5 वर्षो में इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखे थे इस बार आवाज बुलंद कीजिएगा।

सुदेश के वोट पर जयराम की नजर
जयराम ने झारखंड के स्पेशन स्टेटस के बहाने सुदेश महतो को घेरा है क्योकि दोनों की पार्टियों का आधार वोट एक ही है, जयराम लोकसभा चुनाव में अपना दमखम दिखा चुके है अब विधानसभा चुनाव से पहले जयराम अपनी ताकत को और बढ़ाना चाहते है वो जानते है कि जबतक आजसू के वोट बैंक में वो जितनी सेंधमारी करेंगे वो उतने मजबूत होंगे और आजसू कमजोर, ऐसे में वो एक राजनीतिक विकल्प बनकर आ सकते है। जयराम और उनकी पार्टी के नेताओं ने जिस तरह से लोकसभा चुनाव लड़ा और वोट पाया है वो एक अच्छा राजनीतिक आगाज माना जा रहा है।
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लोकसभा चुनाव में दिखाया दम
जयराम ने गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और 347322 वोट हासिल किया, दो विधानसभा क्षेत्र में उसने बढ़त बनाई। डुमरी और गोमिया में जयराम ने अच्छी बढ़त बनाई। डुमरी में तो आजसू और जेएमएम प्रत्याशी से 35 हजार से अधित वोट की बढ़त बनाई। डुमरी में अभी जेएमएम की बेबी देवी विधायक है जो राज्य सरकार में मंत्री भी है वही गोमिया से आजसू के लंबोदर महतो विधायक है। अगर जयराम को लोकसभा चुनाव में पाये वोट को देखा जाए तो दो विधानसभा क्षेत्र में कब्जा करने की हैसियत जयराम ने बना ली है। यही नहीं जयराम के सहयोगी देवेंद्र महतो जिन्होने रांची से लोकसभा चुनाव लड़ा और वहां के सिल्ली विधानसभा क्षेत्र में वह दूसरे नंबर पर रहे, ईचागढ़ में भी देवेंद्र को करीब 38 हजार से अधिक वोट मिला। देवेंद्र को लोकसभा में 132647 वोट मिला। इसके साथ ही हजारीबाग लोकसभा सीट पर जयराम के सहयोगी संजय मेहता को 157977 वोट मिला।
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INDIA नहीं NDA को फायदा
जयराम महतो ने लोकसभा चुनाव जिस तरह से लड़ा उससे बाहरी तौर पर लगता है कि वो एनडीए को मुश्किल में डाल रहे है, लेकिन उनको और उनके सहयोगियों को मिले वोट और बढ़त पर ध्यान दे तो पता चलता है कि जयराम की राजनीति से इंडिया गठबंधन नहीं बल्कि एनडीए को इस चुनाव में मदद मिली है। बात अगर गिरिडीह लोकसभा की करें तो जयराम ने बीजेपी विरोधी वोट इतना पा लिया कि उससे जेएमएम उम्मीदवार मथुरा महतो पिछड़ गये और इस लड़ाई में आजसू के सीपी चौधरी की जीत हो गई। जयराम ने बाद में एक बयान भी जारी किया जिसमें उन्होने कहा कि वो वोट कटवा नहीं है , अगर वो 30 हजार या 50 हजार वोट लाते तो उन्हे वोट कटवा कह सकते थे लेकिन उन्होने तो करीब साढ़े तीन लाख वोट प्राप्त किया है ऐसे में उन्हे वोट कटवा कहना गलत है। वही दूसरी ओर रांची और हजारीबाग सीट की बात करें तो वहां भी जयराम के सहयोगियों ने इतना वोट प्राप्त कर लिया जिससे कांग्रेस का खेल खराब हो गया और दोनों जगहों पर बीजेपी की जीत हो गई। जयराम की राजनीति बताती है कि वो चुनाव में बीजेपी से नाराज वोटों को अपनी ओर आसानी से खींच लेते है जिससे कि बीजेपी के विरोधी पार्टी को नुकसान होता है। अब इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है जिसमें जयराम एक बड़े फैक्टर बनकर उभर सकते है। बीजेपी और जेएमएम दोनों की नजरें अब जयराम पर होंगी। बीजेपी के लिए जयराम मददगार हो सकते है , बीजेपी चाहेगी वो किसी न किसी रूप से जयराम को अपने साथ जोड़े, खासतौर पर तब जब जयराम को सुदेश के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है और दूसरी बात उसमें भीड़ को वोट में बदलने की क्षमता दिख रही है।