दिल्लीः हिंदी साहित्य के दिग्गज लेखक विनोद कुमार शुक्ल को 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार 2024 प्रदान किए जाने की घोषणा के बाद उन्होंने खुशी जताई। शुक्ल ने कहा कि उन्हें कभी नहीं लगा था कि यह प्रतिष्ठित सम्मान उन्हें मिलेगा।
विनोद कुमार शुक्ल ने ज्ञानपीठ पुरस्कार पर क्या कहा?
ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने की घोषणा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए 88 वर्षीय शुक्ल ने कहा,
“यह भारत और साहित्य का बहुत बड़ा पुरस्कार है। इतना बड़ा सम्मान मिलना मेरे लिए बहुत खुशी की बात है।”
उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें कभी इस पुरस्कार की उम्मीद नहीं थी। स्थानीय मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने बताया,
“मुझे कभी नहीं लगा कि मुझे यह पुरस्कार मिलेगा। पुरस्कार की ओर मेरा ध्यान जाता ही नहीं। लोग चर्चा के दौरान मुझसे कहते थे कि अब आपको ज्ञानपीठ मिलना चाहिए, लेकिन मैं संकोच में जवाब नहीं दे पाता था।”
बढ़ती उम्र के बावजूद सतत लेखन
हालांकि उम्र बढ़ने के साथ कुछ कठिनाइयाँ आई हैं, लेकिन शुक्ल अब भी निरंतर लेखन कर रहे हैं। वह कहते हैं,
“कुछ न कुछ लिखने का प्रयास करता रहता हूँ। जब लिखा हुआ छप जाता है तो मैं मुक्त महसूस करता हूँ। लेकिन फिर लिखने का जैसे एक कर्ज सा महसूस होता है और मैं दोबारा लेखन में जुट जाता हूँ।”
साहित्य और लेखन से अटूट लगाव
शुक्ल बताते हैं कि अब अधिकतर समय लेटे रहने में बीतता है, लेकिन फिर भी वह नए विचारों को डायरी में नोट करते हैं और बाद में उन्हें पूरा करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा,
“अब मेरा ज्यादा समय साहित्य के छात्रों के साथ बीतता है। उनके प्रश्नों के उत्तर देना भी मुझे नई ऊर्जा देता है।”
बच्चों के लिए लेखन में रुचि
‘नौकर की कमीज’ और ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ जैसे प्रसिद्ध उपन्यास लिखने वाले शुक्ल अब बच्चों के लिए साहित्य रचने में रुचि ले रहे हैं। उन्होंने कहा,
“अब बहुत बड़ा लिखने की मेरी हिम्मत नहीं होती। इस उम्र में मैं जो भी काम करूं, उसे पूरा करना चाहता हूँ। बच्चों के लिए लिखना मुझे बहुत अच्छा लगता है।”
युवा साहित्यकारों के लिए संदेश
पेन-नोबोकोव अवार्ड जैसे अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कर चुके शुक्ल ने नए और युवा लेखकों को निरंतर लिखने और खुद पर विश्वास रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा,
“लिखना छोटा काम नहीं है। जो लिख रहे हैं, वे बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। अपने लेखन पर भरोसा रखें और दूसरों की टिप्पणियों पर भी ध्यान दें। यह समझें कि आपके लेखन की सार्थकता कितनी है।”
बचपन की यादें और राजनांदगांव से लगाव
शुक्ल का बचपन राजनांदगांव में बीता, जो गजानन माधव मुक्तिबोध और पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जैसे साहित्यकारों का नगर है। अपने शहर को याद करते हुए उन्होंने कहा,
“राजनांदगांव की बहुत याद आती है, लेकिन अब वह पहले जैसा नहीं रहा। वर्षों बाद जब वहाँ गया, तो मेरा घर भी अब वैसा नहीं रहा। समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है।”