रांची: लोहरदगा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतरे चमरा लिंडा ने जो राजनीतिक पैतरा लिया है उससे किसको फायदा होगा किसको नुकसान होगा ये समझना जरूरी है। खुद को आदिवासियों का मसीहा कहने वाले चमरा लिंडा झारखंड के सबसे मनमौजी विधायक है। समय समय पर ये पार्टी, गठबंधन और यहां तक की सरकार के लिए संकट और शर्मिदगी पैदा करते रहते है। जनता इन्हे वोट देती है, लेकिन ये न तो जनता के बीच रहते है और न ही पार्टी के किसी कार्यक्रम में शामिल होते है। कई बार तो इनती हरकते ऐसी होती है कि वो सरकार और पार्टी संगठन के लिए गले की हड्डी बन जाती है। जब जब झारखंड में महागठबंधन की सरकार और झारखंड मुक्ति मोर्चा को इनकी जरूरत महसूस होती है ये दोनों को गच्चा देने से भी नहीं चूकते। पिछले कई सालों के रिकार्ड बताते है कि चमरा न तो पार्टी के किसी मीटिंग में शामिल होते रहे है और न ही पार्टी के किसी निर्णय के साथ खड़े होते है। हेमंत सरकार पर जब राजनीतिक संकट मंडराया तो चमरा लिंडा दूर कही बैठकर तमाशा देखते नजर आए, जब लगा कि सरकार पर कोई संकट नहीं है तो फिर सामने आ गए।
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चमरा लिंडा का राजनीतिक किरदार इतना बहुरूपिया हो चुका है कि अब जनता उनके पैंतरे को समझने लगी है। चमरा लिंडा की नई हरकत ने वर्तमान सरकार और झारखंड मुक्ति मोर्चा दोनों के लिए शर्मिदगी की स्थिति बना दी है। तीन बार लोकसभा चुनाव हार चुके चमरा लिंडा एक बार फिर लोहरदगा से चुनाव मैदान में है। पिछले तीनों बार के चुनाव में चमरा लिंडा के खड़े होने से बीजेपी को फायदा हुआ और कांग्रेस के उम्मीदवार की हार हो गई। अब एक बार फिर चमरा ने लोहरदगा से ताल ठोक दी है, पार्टी के लाख मनाने के बाद भी वे चुनाव मैदान में बने हुए है। जेएमएम ने उन्हे पार्टी का स्टार प्रचारक बना दिया ताकि वो गठबंधन के नेताओं को जीताने में जुट जाए, लेकिन चमरा एक बार फिर अपनी पार्टी और सहयोगी के लिए संकट और राजनीतिक विरोधी के लिए संकटमोचन का काम करने को ठान चुके है।
कई बार तो चमरा ऐसे करते हुए बहुत कन्फ्यूज भी नजर आते है। एक तरफ वो हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद हुए उलगुलान रैली में महागठबंधन के नेताओं के साथ मंच साझा करते नजर आते है तो उसके कुछ दिनों के बाद महागठबंधन के उम्मीदवार के खिलाफ ही नामांकन कर देते है। चमरा का राजनीतिक जीवन बताता है कि वो जनमत पर अपने फैसले कैसे थोपते रहे है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक होने के बाद भी वो पार्टी के खिलाफ काम करते रहे है। चाहे वो 2016 को राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग का मामला हो जिसमें राज्यसभा की दोनों सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार जीत जाते है और जेएमएम के बहुमत होने के बाद भी बसंत सोरेन चुनाव हार जाते है। चमरा की ऐसी हरकते देखकर तो कई बार उनके विरोधी उन्हे बीजेपी का एजेंट तक करार देते है। चमरा के विरोधी कहते है कि जैसे आवैसी बीजेपी की बैकडोर से मदद करते है महागठबंधन का वोट काटकर वैसे ही चमरा ने हमेशा ओवैसी स्टाइल की राजनीति की है अपने पार्टी को नीचा दिखाने और बीजेपी को मदद पहुंचाने का काम किया।
चमरा एक मौकापस्त नेता
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चमरा को उनके विरोधी मौकापस्त नेता भी कहते रहे है। लोग बताते है कि जैसे उन्हे पार्टी और गठबंधन कि जरूरत चुनाव में जीत के लिए होती है वो पार्टी के साथ नजर आते है और जैसे ही चुनाव खत्म हो जाता है वो पार्टी के लिए सिरदर्दी खड़ी करते रहते है। कुछ नेताओं ने यहां तक कहा कि पूर्व सांसद सालखम मुर्मू उन्हे आदिवासी नेता के रूप में पहली पहचान दी बाद में बंधू तिर्की ने उनके आदिवासी नेता के रूप में पहचान को बढ़ाया लेकिन जैसे ही उन्हे ये एहसास हो गया कि वो अब राजनीतिक रूप से स्थापित हो गए है दोनों को दरकिनार कर दिया। वो राज्य के सबसे मतलबी और घनघोर महत्वाकांक्षी नेता है जो अपनी राजनीतिक जरूरत को पूरा करने के लिए कोई भी पैतरा ले सकते है। कभी इधर कभी उधर की राजनीति में कई बार वो दो नाव पर सवार नजर आते है। हेमंत सोरेन की सरकार के खिलाफ भी उन्होने रांची के प्रभात तारा मैदान में आदिवासियों के मुद्दे पर रैली कर सरकार को शर्मिंदा किया था। उस रैली में चमरा ने हेमंत सोरेन सरकार की आलोचना करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। चमरा के इन्ही हरकतों की वजह से कई बार उन्हे लोग आदिवासियों के नाम का इस्तेमाल कर अपनी राजनीति चमकाने वाले नेता कहते है। लोहरदगा में हो रहे लोकसभा चुनाव के दौरान चमरा की राजनीति का वही रंग दिखा है अब देखना है कि जनता उनके इस राजनीति को समझ पाई है या नहीं या उनके इस राजनीति का किस तरह से जवाब देती है। जेएमएम ने चमरा को पार्टी से निलंबित कर जनता को एक संदेश जरूर देने का काम किया है।
चमरा वोट कटवा उम्मीदवार!
कांग्रेस का दावा है कि चमरा के मैदान में उतरने से बीजेपी को नुकसान होगा क्योकि चमरा के प्रभाव वाले क्षेत्र में ही 2019 के चुनाव में बीजेपी को बढ़त मिली थी और बहुत कम अंतर से सुखदेव भगत चुनाव हार गए थे। चमरा के चुनाव लड़ने के बीजेपी की ओर गये वोटर वापस चमरा की ओर शिफ्ट कर जाएंगे और उससे कांग्रेस को फायदा होगा, जो थोड़ा बहुत कांग्रेस उम्मीदवार को नुकसान हो रहा था वो राहुल गांधी की सभा के बाद मैनेज हो गया है वोटर वापस कांग्रेस की ओर आ रहे है। वही बीजेपी का दावा है कि गठबंधन में टूट का फायदा बीजेपी को मिलेगा। कांग्रेस और जेएमएम के वोटबैंक में जेएममए के बागी विधायक चमरा लिंडा सेंधमारी करेंगे। वो एक वोट कटवा उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में आकर एनडीए की जीत सुनिश्चित कर रहे है।
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