रांची.. झारखंड राज्य की मांग को लेकर सबसे महत्वपूर्ण तारीखों में एक है २८ फरवरी १९४८ । इसी दिन पहली बार आधिकारिक तौर से अलग झारखंड का नक्शा पेश किया गया और लाखों आदिवासियों ने रांची में जुट कर अपने लिए अलग राज्य की मांग की । अखिल भारतीय आदिवासी महासभा ने आजाद भारत में पहली बार इतनी बड़ी सभा की थी , राज्य भर से लाखों आदिवासी बैलगाड़ियों, पैदल और ट्रेन से रांची पहुंचे थे और अपने लिए अलग सूबे की मांग की । इस सभा का नेतृत्व जयपाल सिंह मुंडा ने किया था जबकि लोहरदगा के सांसद इग्नेस बेक भी मौजूद थे । दोनों नेताओं ने अपने हस्ताक्षर से प्रस्ताव पास कर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भेजा था । इस प्रस्ताव में कहा गया था
“झारखंड की पहचान आदिवासी क्षेत्र के तौर पर की जाती है । यह क्षेत्र आमतौर पर छोटा नागपुर डिवीजन और संताल परगना जिले के रूप में जाना जाता है, क्षेत्रफल, आकार और जनसंख्या को देखते हुए एक पृथक स्वायत्त ,प्रशासनिक इकाई बनने के लिए पर्याप्त है । वर्तमान व्यवस्था, जिसके तहत विधायिका दो तत्वों से बनी है और उनके बीच बहुत अधिक समानता नहीं है, आदिवासी विकास के लिए प्रतिकूल है।जबकि उक्त आदिवासी इलाकों की नैतिक, भौतिक और सांस्कृतिक प्रगति को मौजूदा व्यवस्थाओं के तहत कभी भी सुरक्षित नहीं किया जा सकता है। उक्त आदिवासी इलाकों को शामिल करते हुए एक अलग गवर्नर प्रांत का निर्माण शांति के लिए महत्वपूर्ण है । यह सम्मेलन जो छोटा नागपुर पठार के लोगों के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है, झारखंड प्रांत के तत्काल निर्माण की मांग करता है, जिसमें आदिवासी इलाकों को शामिल किया गया है, साथ ही सरायकेला, खरसावां, गंगपुर, जसपुर, क्योंझर, बोनाई बामा जैसे निकटवर्ती क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है। सरगुजा, उदयपुर, कोरिया और चांगभाकर जो ऐतिहासिक रूप से छोटानागपुर पठार का हिस्सा हैं, को सुविधाजनक रूप से शामिल किया जाना चाहिए।”
इस प्रस्ताव में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के अध्यक्ष जयपाल सिंह और आई बेक जो कि विधायक के साथ सगंठन के महासचिव भी थे ने हस्ताक्षर किया था । इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी भेजा गया था ।
इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद ही अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर जागरूकता आई और आंदोलन शुरु हुए । हांलाकि अलग झारखंड राज्य का सपना पूरा होने में ५२ साल लग फिर भी अखिल भारतीय महासभा द्वारा पारित प्रस्ताव के मुताबिक झारखंड का नक्शा नहीं बन सका । ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के भाग असली झारखंड का हिस्सा नहीं बन सके । २८ फरवरी को इतिहासकारों ने भले ही भुला दिया हो लेकिन झारखंड राज्य की स्थापना का सपना राज्य के लाखों आदिसवासियों ने इसी दिन देखा था इससे कोई इनकार नहीं कर सकता ।