डेस्कः वक्फ बिल पर समर्थन करना बिहार में नीतीश कुमार को राजनीतिक रूप से जहां महंगा पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। डैमेज कंट्रोल करने की तमाम कोशिशों के बावजूद जेडीयू की संकट कम नहीं हो रहा है। ठीक उसी तरह झारखंड में बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगी आजसू का अंदरूनी कलह वक्फ बिल के समर्थन के बहाने बाहर आ रहा है।
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वक्फ संशोधन बिल पर बीजेपी का साथ देने के बाद आजसू में विरोध के स्वर और तेज हो गये है। आजसू पार्टी के उपाध्यक्ष हसन अंसारी ने वक्फ संशोधन बिल का समर्थन करने पर पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि आजसू पार्टी को इस मामले पर सही स्टैंड लेने चाहिए था। यह अल्पसंख्यक के हितों के खिलाफ है।
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हसन अंसारी ही नहीं वक्फ बिल पर समर्थन के बाद आजसू से जुड़े अल्संख्यक समुदाय के लोगों ने पार्टी से दूरी बना ली है और कई नेताओं ने पार्टी तक छोड़ दी है। बिल पास होने के बाद आजसू पार्टी के रांची महानगर उपाध्यक्ष मोहम्मद जुबैर आलम ने पद से इस्तीफा दे दिया था। जिला परिषद सदस्य आदिल अजीम, रामगढ़ के नगर उपाध्यक्ष रिंकल खान, आजसू नेता अशरफ खान चुन्नू समेत कई नेता पार्टी छोड़ चुके है।
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विधानसभा चुनाव के बाद से ही आजसू पार्टी और सुदेश महतो के लिए कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे और आंदोलनकारी कमल किशोर भगत की पत्नी पूर्व प्रत्याशी नीरू शांति भगत ने इस्तीफा देकर पार्टी को झटका दिया। विधानसभा चुनाव में जिस तरह से आजसू के उम्मीदवारों की हार हुई खासतौर पर सुदेश अपनी पारंपरिक सीट सिल्ली भी नहीं बचा सके उसके बाद से पार्टी का संकट शुरू हो गया। मांडू विधानसभा सीट पर पार्टी के उम्मीदवार निर्मल महतो बहुत कम मार्जिन से चुनाव जीते। जेएलकेएम पार्टी के अध्यक्ष जयराम महतो ने सुदेश की राजनीति पर सबसे बड़ा ग्रहण लगा दिया और आजसू के वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी कर दी। 2009 से कांके रोड़ का बंगला नंबर-5 जिसमें वो रहा करते थे वो भी उनसे छीन गया। लगातार मिल रहे झटकों सुदेश कैसे उबरेंगे ये उनकी राजनीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।