लोहरदगा, 29 अक्टूबर 2024 (मंगलवार): लोहरदगा विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी एवं झारखंड सरकार में मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव ने आज स्वर्गीय कार्तिक उरांव की जयंती के अवसर पर मनहो चौक स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
रामेश्वर उराँव ने दी श्रद्धांजलि
डॉ. रामेश्वर उरांव ने इस अवसर पर कार्तिक उरांव की संघर्षपूर्ण यात्रा का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने कठिन परिस्थितियों में जंगलों से निकलकर लंदन तक का सफर अपनी बुद्धिमत्ता और कौशल के बल पर तय किया। बाबा कार्तिक उरांव ने समाज के उत्थान में अपने जीवन का महत्वपूर्ण योगदान दिया। जवाहरलाल नेहरू के आह्वान पर वे अपनी मातृभूमि झारखंड लौटे और यहाँ के आदिवासियों की सशक्त आवाज बने।
याद किए गए कार्तिक उराँव
डॉ. उरांव ने बताया कि बाबा कार्तिक उरांव के प्रयासों से आदिवासियों पर होने वाले अत्याचारों पर रोक लगी। उनकी पहल से आदिवासियों की भूमि वापसी, आरक्षण, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना, ट्राइबल प्लान एवं आदिवासियों की धार्मिक पहचान को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान मिला।
कार्तिक उरांव जयंती के अवसर पर मनहो चौक में परंपरागत जतरा का आयोजन भी किया गया। इस मौके पर विधायक प्रतिनिधि निशीथ जायसवाल, प्रभात भगत, असलम अंसारी, सतदेव भगत, कुलदीप खाखा, मुखिया हिरही, रमेश उरांव एवं समिति के अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे।
पीएम मोद ने भी कार्तिक उराँव को श्रद्घांजलि
आदिवासी समुदाय के अधिकार और आत्मसम्मान के लिए जीवनपर्यंत समर्पित रहे देश के महान नेता कार्तिक उरांव जी को उनकी जन्म-शताब्दी पर आदरपूर्ण श्रद्धांजलि। वे जनजातीय समाज के एक मुखर प्रवक्ता थे, जो आदिवासी संस्कृति और अस्मिता की रक्षा के लिए निरंतर संघर्षरत रहे। वंचितों के कल्याण के…
— Narendra Modi (@narendramodi) October 29, 2024
कौन थे बाबा कार्तिक उराँव
कार्तिक उरांव झारखंड के एक प्रतिष्ठित आदिवासी नेता, समाजसेवी, इंजीनियर, और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने अपने जीवन को आदिवासी समाज की उन्नति और उनके अधिकारों के लिए समर्पित कर दिया। अपनी असाधारण प्रतिभा और संघर्षशीलता के कारण वे झारखंड के आदिवासी समाज में एक आदर्श और प्रेरणास्रोत बन गए।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कार्तिक उरांव का जन्म 29 अक्टूबर 1924 को झारखंड के लोहरदगा जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। एक साधारण आदिवासी परिवार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियां हासिल कीं। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने अपने शैक्षिक सफर को आगे बढ़ाया और बाद में प्रतिष्ठित रांची कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की।
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा और इंजीनियरिंग में करियर
कार्तिक उरांव को स्कॉलरशिप पर इंग्लैंड में पढ़ने का मौका मिला, जहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाते हुए लंदन से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की। उनकी असाधारण प्रतिभा और कड़ी मेहनत ने उन्हें उच्च तकनीकी ज्ञान के साथ एक कुशल इंजीनियर के रूप में स्थापित किया।
राजनीतिक करियर और आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष
अपने विदेश प्रवास के बाद, कार्तिक उरांव भारत लौट आए और जवाहरलाल नेहरू के आह्वान पर भारतीय राजनीति में प्रवेश किया। 1967 में वे पहली बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और लोकसभा सदस्य बने। उन्होंने आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
कार्तिक उरांव ने झारखंड और देश भर के आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आदिवासी भूमि के संरक्षण, उनके लिए आरक्षण व्यवस्था, और झारखंड में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण प्रयास उनके द्वारा किए गए। वे आदिवासी पहचान और संस्कृति को मजबूत करने में भी अग्रणी रहे।
सामाजिक योगदान और मान्यता
कार्तिक उरांव ने अपने कार्यों के माध्यम से समाज को जोड़ा और आदिवासी समाज के सशक्तिकरण में योगदान दिया। उनका दृष्टिकोण “सबका विकास” था, और वे अपने जीवन के अंतिम क्षण तक आदिवासियों के अधिकारों और उनके कल्याण के लिए समर्पित रहे। उन्होंने आदिवासी समुदाय के आर्थिक, शैक्षिक, और सामाजिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए कई योजनाओं का संचालन किया।
निधन और विरासत
8 दिसंबर 1981 को कार्तिक उरांव का निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी झारखंड और भारतीय आदिवासी समाज में जीवित है। उन्हें आज भी झारखंड के आदिवासी समाज के मसीहा के रूप में सम्मानित किया जाता है, और उनकी जयंती पर पूरे राज्य में श्रद्धांजलि दी जाती है। उनके नाम पर कई संस्थान, सड़कें, और शैक्षिक संस्थान हैं, जो उनकी उपलब्धियों और योगदानों की याद दिलाते हैं।