रांची.. कल्पना सोरेन का वक्त आ गया । हेमंत सोरेन की गैरमौजूदगी में हेमंत का नाम और चेहरे के साथ सियासत की उस पारी की शुरुआत करने वाली हैं जिसे सियासा भाषा में ‘विक्टिम कार्ड’ कहते हैं। दरअसल कल्पना सोरेन की सियासी शुरुआत उसी दिन से शुरु हो गई थी जब से हेमंत सोरेन की कुर्सी पर ईडी का खतरा मंडरा रहा था । गांडेय विधानसभा से जेएमएम विधायक का इस्तीफ़ा, फिर दिल्ली से ईडी को चकमा देते हुए हेमंत का अचानक राँची पहुँचना और महागठबंधन के विधायकों की मीटिंग में कल्पना सोरेन का हेमंत के साथ जाना, चंपाई सोरेन का आशीर्वाद लेना ये बताता है कि पटकथा पहली से लिखी जा रही थी । लेखक कोई भी हो मगर कल्पना सोरेन झारखंड की सियासत का चुनावी चेहरा होने वाली है यह तय हो चुका है ।कल्पना ने भाषण की कला का प्रदर्शन भले ही सियासी मैदान में नहीं किया हो लेकिन कई कार्यक्रमों में उनके बोलने की कला की परीक्षा हो चुकी है ।
राजनीति में एंट्री के लिए उनके पास माकूल माहौल है । शायद इससे अनुकूल मौसम होता भी नहीं । क्योंकि हेमंत की कुर्सी पर रहते हुए अगर वो चुनाव लड़ती तो परिरवारवाद का आरोप लगता चस्पा होता । अब वे मोदी सरकार की कथित तानाशाही की शिकार बन कर जनता के सामने आएंगीं । गांडेय विधानसभा गिरिडीह में ही है और कल्पना की सियासी एंट्री वहीं से हो रही है । ज़ाहिर है कुछ भी अचानक नहीं है । अगर बीजेपी और केंद्र की एजेंसियों का अपना तरीक़ा है तो जेएमएम ने भी इस बार चुनाव के लिए अलग तरह की रणनीति बनाई है ।
कल्पना सोरेन राजनीति में आने से जेएमएम को कितना फ़ायदा होगा और बीजेपी को कितना नुक़सान इसका विश्लेषण ज़रूरी है । सबसे पहले बीजेपी के नुक़सान की चर्चा करें तो बीजेपी को पहला नुक़सान है अपने उम्मीदवारों के सामने बतौर कल्पना सोरेन और हेमंत सोरेन का नाम होना । बीजेपी भले ही लाख कहे कि हेमंत सोरेन को उनके गुनाहों की वजह से जेल जाना पड़ा है मगर झारखंड की जनता भी देश की उन्हीं वोटर्स की तरह है जो जेल से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को चुनकर संसद और विधानसभाओं में भेजती रही है । बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि हेमंत सोरेन के जेल जाने की वजह से उन्होंने झारखंड में बड़ा सियासी मोहरे को मैदान से बाहर कर दिया है लेकिन आदिवासी वोटर्स में इसको लेकर नाराज़गी है । अब बीजेपी इससे काट के तलाश में है ।
कल्पना जहां भी जाएँगी हेमंत का नाम और चेहरा तो साथ होगा ही कल्पना के अपने व्यक्तित्व का भी प्रभाव पड़ना तय है । बीजेपी चुनावी मैदान में हेमंत को उस तरह भ्रष्टाचारी नहीं बता पाएगी जिस तरह की बिहार में लालू यादव को बताती रही है । इसकी मिसाल विश्वास मत के दौरान बीजेपी द्वारा हेमंत पर सीधे अटैक ना करने से दिख चुका है । बीजेपी हेमंत से ज्यादा कांग्रेस को घेरती रही । बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि भावनात्मक राजनीतिक का असर देश के चुनावी मैदान में कितना पड़ता है इसलिए बीजेपी के लिए कल्पना का चुनावी मैदान में आना घाटे का सौदा है ।
रही बात झारखंड मुक्ति मोर्चा के फ़ायदे की तो गुरुजी अपनी सेहत की वजह से घर तक ही सीमित है । उनके आशीर्वाद देने वाले फ़ोटो ऑप से नई पीढ़ी के वोटर्स मे असर ज्यादा नहीं है इसलिए जेएमएम को एक चेहरा चाहिए । चंपाई सोरेन मुख्यमंत्री तो हैं लेकिन उनका असर कोल्हान तक ही सीमित माना जाता रहा है, क्योंकि अभी लोकसभा चुनाव सिर पर है तो ऐसे में चंपाई के पास इमेज बिल्डिंग का वक्त नहीं है। महतो वोटर्स के जगन्नाथ महतो अब इस दुनिया में नहीं रहे । जेएमएम के दूसरे नेताओं के पास राज्यव्यापी चेहरा नहीं है । इसीलिए कल्पना सोरेन से माकूल चेहरा जेएमएम के फ़िलहाल कोई नहीं है । कल्पना सोरेन पहचान की मोहताज नहीं इसलिए आम लोगों तक पहुँचने में कोई परेशानी होने वाली नहीं । हांलाकि वोट कितना बढ़ेगा यह बताना मुश्किल है मगर मौजूदा सियासी खेल में जहां चेहरा ही महत्वपूर्ण हैं वहां कल्पना सोरेन सबसे माकूल इमेज है।