वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद के सबसे पुराने मामले में हिंदू पक्ष को अदालत से बड़ा झटका लगा है। सबसे पुराने यानी 1991 में दायर मुकदमे में सम्पूर्ण सर्वे की मांग वाली याचिका अदालत ने खारिज कर दी है। सिविल जज सीनियर डिवीजन (फास्ट ट्रैक कोर्ट) युगुल शंभू की अदालत ने 19 अक्टूबर को याचिका पर दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था।
गौरतलब है कि 1991 के वाद में सुनवाई के दौरान सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक) कोर्ट ने ही 8 अप्रैल 2021 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को सम्पूर्ण ज्ञानवापी के सर्वे का आदेश दिया था। एएसआई की ओर से कार्रवाई लम्बित थी। बाद में मुकदमे में प्रतिवादी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने लोअर कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही थी कि राखी सिंह सहित पांच अन्य महिलाओं की ओर से एक अन्य याचिका पर फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ही एएसआई को ज्ञानवापी के सर्वेक्षण का आदेश दिया। एएसआई ने करीब एक माह से अधिक समय तक वैज्ञानिक तरीके से सर्वे के बाद अगस्त में सक्षम अदालत में रिपोर्ट सौंप दी।
उधर, हाईकोर्ट ने 19 दिसम्बर 2023 में अंजुमन की याचिका खारिज करते हुए एफटीसी कोर्ट को मूलवाद को छह माह में निस्तारित करने का आदेश दिया। कहा कि एएसआई रिपोर्ट वादी को उपलब्ध कराई जाए। वादमित्र ने जनवरी 2024 में एफटीसी में एक अन्य प्रार्थना पत्र दाखिल कर सर्वे से बचे शेष हिस्से (वुजूखाना और छह अन्य तहखाना) सहित आराजी संख्या 9131 व 9132 के सर्वेक्षण की भी मांग की। जिसका अंजुमन ने विरोध करते हुए कहा कि पूर्व में सर्वेक्षण हो चुका है।
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वुजूखाना का सर्वेक्षण इसलिए उचित नहीं होगा क्योंकि, उसे सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश पर संरक्षित किया गया है। वहीं, तहखाना सहित अन्य आराजी संख्या के सर्वेक्षण में वर्तमान ढांचा के क्षतिग्रस्त होने की पूरी संभावना है। उच्चतम न्यायालय ने भी एएसआई को सशर्त सर्वेक्षण की अनुमति दी थी कि बिना किसी खुदाई या ढांचे को क्षतिग्रस्त किए ही सर्वेक्षण किया जाए।
अदालत ने आठ माह तक लगातार सुनवाई के बाद वादमित्र की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर संरक्षित हिस्से को सर्वेक्षण के लिए अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने अपने 21 पेज के आदेश में यह भी कहा कि दिसम्बर 2023 को हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट को निर्णय लेने के लिए कहा है। वादमित्र के प्रार्थनापत्र में सर्वेक्षण के लिए कोई ठोस कारण नहीं बताया गया है। लिहाजा, प्रार्थना पत्र स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अदालत ने मूल वाद में सुनवाई के लिए 30 अक्तूबर की तिथि तय की है।