डेस्कः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरूवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कासगंज के तीन युवकों की सजा कम कर दी। कोर्ट ने कहा कि पीड़ित के स्तनों को पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना, उसे पुलिया के नीचे खींचकर ले जाने की कोशिश करना रेप नहीं माना जा सकता है। यह केवल यौन उत्पीड़न के श्रेणी में आता है।
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जस्टिस राम मनोहरण नारायण मिश्र ने कासगंज के आकाश व दो अन्य आरोपियों की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए कहा कि लगाए गए आरोप और मामले के तथ्य इस मामले में रेप की कोशिश का अपराध नहीं बनाते है। रेप के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को यह स्थापित करना होगा कि यह तैयारी के चरण में आगे निकल गया था। अपराध करने की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच का अंतर मुख्य रूप से दृढ़ संकल्प की अधिक डिग्री में निहित है। कोर्ट ने स्पेशल न्यायालय के सम्मन आदेश में संशोधन करते हुए दो आरोपियों के खिलाफ आरोपों में परिवर्तन किया।
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आरोपियों को आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत मुकदमे में समन किया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपियों पर धारा-354बी आईपीसी (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के आरोप के साथ पॉक्सो एक्ट की धारा 9/ 10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जाए। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों पर लगाये गए आरोप और मामले के तथ्यों के आधार पर इस मामले में रेप की कोशिश का अपराध नहीं बनता। इसके बजाय आरोपी को आईपीसी की धारा 354 (B) यानि पीड़िता को निवस्त्र करने या उसे नग्न होने के लिए मजबूर करने के इरादे से हमला या दुर्व्यवहार करने और पॉक्सो एक्ट की धारा 9 (M) के तहत तलब किया जा सकता है।