रांचीः 1 फरवरी 2024 को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अंतरिम बजट पेश करने वाली हैं। आर्थिक मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला का कहना है कि अंतरिम बजट में आगामी वित्त वर्ष के कुछ महीनों के लिये जरुरी खर्चों की संसद से मंजूरी लने की संवैधानिक व्यवस्था है और इसमें कोई बड़ी घोषणा करने से बचना सरकार के लिये नैतिक तकाजा होता है।
आधिकारिक रुप से सदन मे इस निमित्त जो पेश किया जाता है उसे लेखानुदान कहा जाता है क्योंकि अंतरिम बजट का संविधान मे कोई उल्लेख नही किया गया है। चुनाव पूर्व पेश किये जाने वाले अंतरिम बजट में देशभर के मतदाताओं को रिझाने का काम सरकारें करती रही हैं।
2019 के अंतरिम बजट की घोषणाएं याद करें तो पीएम किसान सम्मान निधि स्कीम की बड़ी घोषणा की गयी थी जिसका वित्तीय भार 75 हजार करोड़ रुपये का सरकार पर पड़ा था। यद्यपि वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कहा है कि यह अंतरिम बजट है और इसमें कोई बड़ी घोषणा नही होने वाली है।
वित्तीय स्तर पर सब कुछ ठीक-ठीक नही चल रहा है। अंतराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान आईएमएफ ने तो देश के बढ़ते कर्ज बोझ को लेकर चिंता का इजहार भी किया है। सांख्यिकी मंत्रालय ने 5 जनवरी को विकास दर के जो आंकड़े जारी किये हैं, उससे पता चलता है कि कृषि सेक्टर की स्थिति अच्छी नही है और पिछले साल की तुलना मे उत्पादन मे बड़ी गिरावट का अंदेशा है जो किसानों की माली हालात को प्रभावित करेंगे।
इसी तरह निजी खपत खर्च में भी बड़ी कमजोरी आयी है जिससे यह पता चलता है कि लोगों की आय मे बृद्धि की गति बिल्कुल सुस्त है। यह बताते चले कि निजी खपत खर्च वह महत्वपूर्ण घटक है जिसकी जीडीपी में 60 प्रतिशत की भागीदारी है। और इसमें पिछले साल 7.5:की वृद्धि की तुलना में 4.4 की सुस्त गति का अनुमान है।
आगामी अंतरिम बजट मे कोई बड़ी घोषणा की अपेक्षा हम न भी करें तो भी सरकार किसानों के लिये, खपत खर्च में आयी कमी से जूझ रही गरीब आबादी के लिये और महिलाओं के लिये कुछ तो उपाय जरुर लेकर आयेगी।
सरकार के राजस्व आय का एक बहुत बड़ा भाग लगभग 52 प्रतिशत तो सिर्फ ब्याज के भुगतान मद मे ही चला जाता है जो सरकार के कुल बजट खर्च का लगभग 24 प्रतिशत होता है। इसमें कमी लाना सरकार की प्राथमिकता हो ताकि राजस्व आय के पैसे विकासात्मक मद मे नियोजित करने की ज्यादा जगह बन सके।