महाकुंभः बहुत साल पहले की बात है । आज़ाद भारत का पहला कुंभ था , सन 1954 की कहानी थी । नेहरु प्रधानमंत्री थे और गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री । मौनी आमवस्या के दिन एक भगदड़ मच गई और संसद में एक सदस्य ने साधुओं को कह दिया ‘Barbaric Pomp’ । इस शब्द के निकलते ही बहुत से सदस्यों की भावनाएं आहत हो गईं । आसन की कुर्सी पर बैठे उपाध्यक्ष ने भी ऐतराज जताया लेकिन नागा साधुऔं के लिए ‘Barbaric Pomp’ के इस्तेमाल पर इस सदस्य ने जरा भी खेद नहीं जताया और शब्द वापस लेने से इनकार कर दिया ।
आचार्य कृपलानी ने कहा नागाओं को कहा ‘Barbaric Pomp’
सदन में नेहरू मौजूद । नेहरु ने कहा ‘Barbaric Pomp’ के इस्तेमाल पर उपाध्यक्ष के ऐतराज पर कहा “ आप ने अभी कृपया जो कुछ कहा मैं उस का निर्देश नहीं करता, परन्तु उस ये प्रश्न उठता है कि कोई माननीय सदस्य उचित भाषा में किसी दूसरे के धार्मिक मत पर आक्षेप न करे । यदि किसी बात को वह घोर रुढ़िवादिता कहता है तो एक व्यापक प्रश्न उठ खड़ा होता है । यदि हम में से कोई अस्पृश्यता को घोर रुढ़िवादिता या उससे भी बुरा कहता है तो यह कर कर वह लोगों को ठेस पहुंचता है । हम यह जानते हैं पर फिर भी हम वैसा करते हैं । अतः इन बातों के बीच सीमा–रेखा खींच सकना मुश्किल है । ‘Barbaric Pomp’ कहने वाले आचार्य कृपलानी थे और उनके शब्द के साथ खड़े थे पंडित नेहरु । बताने की जरुरत नहीं कि आज़ाद भारत में दोनों के रिश्ते कैसे थे।
कुंभ में गंगा में नहाने पर धुल जाते हैं पाप ?
बहरहाल बात आगे की । आज़ाद भारत में मन रहा पहला कुंभ को लेकर देश उत्साहित था । सरकार भी जोश में थी । तैयारियों का दावा किया जा रहा था मगर मौनी आमवस्या के दिन बड़ा हादसा हो गया । भगदड़ मचने से सैकड़ों लोगों की जान चली गई। मामला संसद में उठा और आचार्य कृपलानी ने इस हादसे और महाकुंभ पर दो कहा वैसा कहना आज के किसी भी सांसद के बूते की बात नहीं है । आचार्य कृपलानी ने कहा “ पहले भी कुंभ हो चुके हैं । हम लोग इस भावना से मेले में कभी न जाते थे कि गंगाजल छिड़कने से हमारे पाप धूल जाएंगें बल्कि से सेवा समितियों आदि में भाग लेने जाते थे । एक बार महात्मा गांधी भी इसी हेतु हरिद्वार गये थे । हम इस मेले को कभी इतना बढ़ावा नहीं देते थे और न बिल्कुल नंगे नागों की जुलूस को ही अच्छा मानते थे । हमें भय था कि विदेशी लोग इन के फोटो ले.कर हमारे धर्म पर छीटें कसेंगे। न हमें ऊंटों, हाथियों आदि के साघुओं के जुलूस और ना ही पहले चलने के उन के दावे पसंद थे.. आचार्य कृपलानी यहीं पर नहीं रुके तमाम विधायकों के विरोध के बावजूद वे अड़े रहे ।
कुंभ हादसे पर नेहरू पर किया जबरदस्त हमला
आगे उन्होंने फिर महाकुंभ में दिखावे और सरकारी प्रचार–प्रसार के इस्तेमाल करते हुए सरकार पर हमला करते हुए कहा “ हमारी संस्कृति दर्शन, विज्ञान आदि की ओर विशेष ध्यान देती थी, पूजा, आचार और तमाशे पर नहीं । पर आज विज्ञापन दे–देकर लोगों को मेले में एकत्र किया जा रहा है । पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था । हम से कहा गया कि वहां सब कुछ व्यवस्था होगी यह भी बताया गया कि सरकार और कांग्रेस के सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति वहां एकत्र होंगे । पहले साधुओं के अखाड़े होते थे, अब इन लोगों के सपरिवार संदल–बल अखाड़े और बढ़ गए। नागाों के जुलूस के साथ एक नया जुलूस जोड़ा गया। उनकी ओर जिन को उन्होंने पास दिए थे उन की कारे खूब आ जा सकती थीं उनके लिए सड़कें खाली रखी जाती थीं । पहेली भी देशी नरेश भी तीर्थ संतान को जाते थए पर अपने ठाठ –बाट के साथ नहीं बल्कि नंगे पैरों अकेली धोती पहने और धरती पर लोटते हुए उनकी ऐसी प्रबल श्रद्धा थी । एक राज्यपाल ने जो अपने को भारतीय संस्कृति का प्रतीक मानता है अपना शिविर वहां लगाया .. “
नेहरु ने किया कृपलानी का बचाव
आचार्य कृपलानी ने जैसे ही राज्यपाल का ना लिया हंगामा मच गया । विरोध होने लगा । राज्यपाल के जिक्र पर पक्ष और विपक्ष की ओर से ऐतराज जताया गया । डिप्टी स्पीकर ने कहा राज्यपाल का नाम नहीं लिया जा सकता । पंडित नेहरु फिर खड़े हुए । उन्होंने कहा ‘’वास्तव मेंयह बात मेरी समझ में नहीं प्रति | मेरा निवेदन है कि कोई महज़ इसलिए किन्हीं व्यक्तियों का निर्देश करना परिहार नहीं कर सकता कि वे उच्च प्रतिष्ठावान व्यक्ति हें । यह बात किसी तरह मेरी समझ में नहीं आती । “ महाकुंभ में हुए हादसे पर नेहरु की सरकार की जबरदस्त आलोचना हो रही थी नेहरु सुन रहे थे और कृपलानी का दो बार उन्होंने समर्थन किया उन दो बातों के लिए जिस पर आज भारत के संसद में कोई नहीं उठ कर बोल सकता । फ़िलहाल मौनी आमवस्या पर हुई भगदड़ पर कांग्रेस सरकार को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कृपलानी ने हमला जारी रखा ।
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के एम मुंशी को घेरा
आचार्य कृपलानी ने आगे कहा –मैं कोई कष्टकर बात नहीं कहना किन्तु में तथ्यों का परिहार नहीं कर सकता । राज्यपाल साधुओं के शिविर में पहुंचे थे। । साधुओं के संघों ने कांग्रेसी सरकारों का समर्थन करते हुए संकल् पास किये थे । अंग्रेजी राज्य के जमाने में इन साधुओं ने विदेशी सरकार के प्रति वफादार होने के संकल्प पास किये थे । मेरा निवेदन है कि इस प्रकार का धार्मिक संस्थानों की प्रतिष्ठा कम करता है तथा उन्हें विवादग्रस्त राजनीति में घसीटता है । धर्म नैतिकता तथा संवैधानिक औचित्यता के नाम पर इस बात को निरुत्साहित किया जाना हम ने कम स्थान में इतने अधिक व्यक्तियों को एकत्रित होने दिया । गाड़ियां पर गाड़ियां भर कर कुम्भ में पहुंच रही थीं । लोग गाड़ियों पर लटके हुए और छतों पर बैठ हुए कराहरहे थे । कितनों की ही इस परिवहन के दौरान में ही मृत्यु हो गयी । फिर भी हम ने इस यातायात को विनियमित नहीं किया । टिकट–बेटिकट सब मुसाफिर गाड़ियों में भरे लटके हुए चले जा रहे थे । में कहता हूं कि इस प्रकार उन्हें सफर करने देना अपराघ से कम नहीं है । जब मुसाफिरों के परिवहन में ही घातक दुर्घटनाएं हुई तो उचित प्रबन्ध कयों नहीं किया गया ?
इतिहास के सबसे भव्य उत्सव – महाकुम्भ 2025 का भव्य उत्सव !♥️
मौनी अमावस्या के पूर्व संध्या पर अमृत स्नान करने के लिए प्रयागराज महाकुंभ में दूर-दूर से श्रद्धालुओं का अद्भुत सैलाब उमड़ रहा है। यह इतिहास का एक ऐसा पल है जो अविस्मरणीय है ! pic.twitter.com/dQ8IQbZ5wK
— MahaKumbh 2025 (@MahaaKumbh) January 28, 2025
‘देश को मध्ययुग में ले जा रहे हैं’
आचार्य कृपलानी ने आगे कहा ”टीके लगवाने सम्बन्धी प्रतिबन्धक्यों वापस लिया गया ? में यह जानना चाहता हुं कि राज्य के प्रमुख से लेकर अन्यॉ कितने प्रतिष्ठित व्यक्ति अपने–अपने परिवारों सहित जो गंगा में डुबकी लगा करपवित्र होने के लिए यह परिवर्तन उन के मस्तिष्कों में कब से तरा गया ? कांग्रेस वालों ने पहले तो कभी यह नहीं माना था कि किसी विशिष्ट दिवस पर गंगा में नहाने से उन के पाप नष्ट हो जायेंगे | शायद वे दिखावे की प्रकृति को लेकर वहां गये थे । आधुनिक काल में भी हम में से कुछ लोगों के लिए यह सम्भव है कि इस पर विश्वास करें कि गंगा के पानी से हमारे पाप घुल सकते हैं । किन्तु यह गंगा का पानी नहीं वरन् उन का विश्वास है जो उन्हें चंगा कर देता है तथा और पाप न करने की प्रेरणा देता है । किन्तु उन के लिए जो कि इस में विश्वास नहीं करते और जो गंगा में नहानें पर भी पाप करने से नहीं रुकते ये नहान निन्दनीय है । केवल यही संस्कृति के नाम पर हम उन पुरानेॉ रीति–रिवाजों के मूल्यांकन तथा श्रद्धा को पुनरुज्जीवित कर रहे हैं जो कालातीत हो चुके हैं । ऐसा कर के हम उन सुधारों के मूल्यांकनों तथा मान्यताओं को कम कर रहे हूं जिन के लिए बुद्ध से गांधी तक के सुधारकों ने कार्य किया है । हम झपने देश को मध्य युग में सीटे ले जा रहे हैं । ऐसी हम इसलिए भी करते हैं कि जन–समूहों के साथ हम लोक–प्रिय रहे था तपनी शासन–सत्ता बनाएं रहें । और क्योंकि ये काम हम बिना विश्वास और श्रद्धा के करते इसलिए हमारे प्रयत्न असफल रहते जैसा कि कुम्भ मेले में रहे और देश को शोक उठाना पड़ता है । “
विवेक