नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा वर्षों से आपराधिक अपीलों पर फैसला नहीं सुनाने के मामले में चार दोषियों की ओर से दायर याचिका पर गंभीर रुख अपनाते हुए नोटिस जारी किया है। इन चारों दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, और ये सभी अनुसूचित जनजाति (ST) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय से आते हैं। इनमें से एक आरोपी पिछले 16 वर्षों से जेल में बंद है, जबकि अन्य तीनों ने 11 से 14 वर्ष की सजा काट ली है।
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट में अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की थी, जिन पर सुनवाई के बाद वर्ष 2022 में निर्णय सुरक्षित रखे गए थे। लेकिन दो से तीन साल बीत जाने के बाद भी अब तक फैसले नहीं सुनाए गए हैं। इससे उनके मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित न्याय के अधिकार, का उल्लंघन हो रहा है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने झारखंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह सीलबंद लिफाफे में लंबित फैसलों की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करें। इसके साथ ही दोषियों द्वारा सजा स्थगित करने की मांग पर भी कोर्ट ने नोटिस जारी किया है।
याचिका में यह भी कहा गया कि इसी तरह की स्थिति में 10 अन्य दोषियों की अपीलें भी वर्षों से लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं ने इस संबंध में कई बार संबंधित न्यायिक व प्रशासनिक अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई ।