दिल्ली: लोकसभा चुनाव में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला वो 303 से घटकर सीधे 240 पर आ गई। 2014 और 2019 में बीजेपी अपने दम पर बहुमत लेकर आई थी लेकिन इस बार नारा तो 400 पार का था लेकिन आंकड़ा 240 पर अकट गया। हालांकि एनडीए को 293 सीट के साथ जरूरत बहुमत मिली।
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बीजेपी के सीटों में इसतरह से कमी आने को लेकर आरएसएस ने बड़ी सख्त टिप्पणी की है।संघ से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर ने एक लेख छापा है उसमें कहा गया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आरएसएस से मदद के लिए संपर्क नहीं किया, इस वजह से पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। चुनाव परिणाम अतिआत्मविश्वासी भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं आइना दिखाने जैसा है। आर्टिकल में कहा गया है कि नेता सोशल मीडिया में पोस्ट करने में व्यस्त थे और जमीन पर नहीं उतरे। नेता अपनी ही दुनियां में मस्त थे और जमीन से उठ रही आवाजें उन्हे नहीं सुनाई दे रही थी।
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आरएसएस के आजीवन सदस्य रहे रतन शारदा अपने आर्टिकल में लिखते है कि यह झूठा अहंकार की भाजपा नेता ही वास्तविक राजनीति समझते है और आरएसएस वाले गांव के मूर्ख है, हास्यास्पद है। उन्होने खराब चुनाव परिणाम को लेकर कहा कि 2024 के आम चुनाव के नतीजे अति आत्मविश्वासी भाजपा कार्यकर्ताओं और कई नेताओं के लिए रियलिटी चेक का मौक़ा है। उन्हें यह एहसास नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी का 400+ का आह्वान भाजपा के लिए एक लक्ष्य और विपक्ष के लिए चुनौती था। लक्ष्य मैदान में कड़ी मेहनत से हासिल किए जाते हैं, सोशल मीडिया पर पोस्टर और सेल्फी शेयर करने से नहीं। चूंकि वे अपनी धुन में खुश थे, मोदीजी के आभामंडल से झलकती चमक का आनंद ले रहे थे, इसलिए वे जमीन पर आवाज नहीं सुन रहे थे।’
अपने आर्टिकल में लेखक ने आगे बीजेपी के मंत्री और सांसदों की आलोचना करते हुए लिखा है कि वो ‘भाजपा या आरएसएस के किसी भी कार्यकर्ता और आम नागरिक की सबसे बड़ी शिकायत सालों से स्थानीय सांसद या विधायक से मिलना मुश्किल या असंभव है, मंत्रियों की तो बात ही छोड़िए। उनकी समस्याओं के प्रति असंवेदनशीलता एक और पक्ष है। भाजपा के चुने हुए सांसद और मंत्री हमेशा व्यस्त क्यों रहते हैं? वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में कभी दिखाई क्यों नहीं देते? संदेशों का जवाब देना इतना मुश्किल क्यों है?’
मोदी मैजिक और बाहरी के भरोसे रहना नुकसानदेह रहा
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रतन शारदा अपने लेख में बताया है कि मोदी मैजिक की भी अपने सीमाएं और जिस तरह से बीजेपी में बाहर से आये नेताओं को थोपा गया और स्थानीय नेता से किनारा किया गया उसका भी नुकसान हुआ है। उन्होने कहा है कि ‘यह विचार कि मोदीजी सभी 543 सीटों पर लड़ रहे हैं, इसका सीमित प्रभाव का है। यह विचार तब आत्मघाती साबित हुआ जब उम्मीदवारों को बदल दिया गया, स्थानीय नेताओं की कीमत पर थोपा गया और दलबदलुओं को अधिक महत्व दिया गया। देर से आने वालों को समायोजित करने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने वाले सांसदों की बलि देना दुखद है।’