रांची: लोहरदगा संसदीय सीट पर सोमवार को चुनाव होना है, लेकिन वहां त्रिकोणीय चुनाव होने की संभावनाएं पिछले पांच दिनों में हुए बदलाव के बाद घटती चली आ रही है। पिछले एक हफ्ते में जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी उम्मीदवार समीर उरांव के पक्ष में सिसई में सभा की वही लोहरदगा संसदीय क्षेत्र के बसिया में राहुल गांधी की सभा ने लड़ाई को आमने सामने ला दिया।
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चमरा वोट कटवा !
लोहरदगा संसदीय क्षेत्र में बदली राजनीतिक माहौल बता रहा है कि अब यहां पर त्रिकोणीय संघर्ष की संभावनाएं खत्म हो गई है। जहां एक ओर मोदी के नाम पर बीजेपी के वोटर लामबंद हो रहे है वही चमरा लिंडा के खड़े होने से कांग्रेस उम्मीदवार के वोट बैंक में सेंधमारी अब खत्म होते नजर आ रही है। राहुल गांधी की सभा के बाद कांग्रेस पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक वापस लौट रहा है। आदिवासी वोटरों में चमरा का प्रभाव सिमटता दिख रहा है। मुस्लिम वोटर के साथ-साथ आदिवासी और ईसाई वोटरों को यह बात समझ में आ चुका है कि चमरा लिंडा इस चुनाव में सिर्फ कांग्रेस के वोट काटने के लिए खड़े है, चमरा को वोट देने से कांग्रेस को नुकसान और बीजेपी को फायदा हो सकता हैै। इस बात को कांग्रेस के प्रत्याशी और वर्कर शहरी क्षेत्र से लेकर गांव-गांव में मतदाताओं तक पहुंचा चुके है कि चमरा लिंडा की राजनीति ठीक वैसे ही है जैसे ओवैसी की राजनीति है। चमरा लिंडा कांग्रेस का वोट काटकर सिर्फ बीजेपी को फायदा पहुंचा सकते है। ये एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच की लड़ाई है।
सरना धर्म कोड बनेगा गेम चेंजर
इस लोकसभा क्षेत्र में आदिवासियों की बड़ी आबादी है या यू कहे वो हार और जीत तय करते है तो कोई गलत नहीं होगा। इनकी बहुत पुरानी मांग सरना धर्म कोड़ को लेकर रही है, राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा से लेकर लोहरदगा में हुए चुनावी सभा के दौरान भी सरना धर्म कोड लागू करने की बात कही थी। सरना धर्म कोड लागू करने की राहुल गांधी के इस बयान ने पूरे हवा को बदलने का काम किया है। इसके साथ भाजपा जो संविधान बदलने के प्रयास में है उसे रोकेंगे। हरेक वर्ष महिलाओं को 100000 रुपए देकर लखपति महिला बनाएंगे। जल-जमीन और जंगल की रक्षा करेंगे। मोदी आदिवासियों को बनवासी कहते हैं, जबकि आदिवासी यहां के मुल निवासी हैं और बनवासी कहकर बीजेपी आदिवासियों को जंगल से बेदखल करना चाहती है, जिसे कांग्रेस कभी होने नहीं देगी। राहुल गांधी के इस तरह के व्यक्तव के बाद अंदर इस बात की उम्मीद जगी है कि अगर कांग्रेस को वोट दिया जाए तो सरना धर्म कोड लागू हो जाएगा। इसके साथ ही चमरा के चुनाव में खड़े होने के बाद कांग्रेस को होने वाले नुकसान को भी वोटरों को बखूबी समझाया गया है। कांग्रेस ने अपने वोटरों को उदाहरण देकर बताया कि कैसे चमरा लिंडा ने विगत 2004, 2009 और 2014 के तीन लोकसभा में उम्मीदवार के साथ कांग्रेस की हार का कारण भी बने। चमरा जब-जब चुनाव में उतरे उन्होंने कांग्रेस का खेल खराब किया, इसलिए इस बार ऐसी कोई गलती न हो जो कांग्रेस की जगह उनके विरोधियों को फायदा पहुंचा जाए।
बीजेपी ने भी चली सधी चाल
दूसरी ओर बीजेपी जिसे 2019 के चुनाव में बिशुनपुर में बढ़त मिली थी उसने भी चमरा लिंडा के मैदान में खड़े होने के बाद सतर्क हुई है। कई राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना था कि 2019 के चुनाव में बीजेपी को चमरा लिंडा के चुनाव में नहीं खड़े होने का फायदा मिला और उसके समर्थक वोट बीजेपी के पास आ गए। इस बार चमरा के चुनाव मैदान में आने से वापस बीजेपी के वोटर का चमरा लिंडा के समर्थन में शिफ्ट होने का खतरा बीजेपी भांप गई है। इसलिए उसने भी अपने वोटरों को संदेश दे दिया है कि चमरा सिर्फ इस चुनाव में खेल खराब करने के लिए खड़े हुए है वो हार और जीत के फैक्टर नहीं है। इस तरह से कांग्रेस और बीजेपी का अपने वोटरों को एकजुट करने की रणनीति ने चमरा का खेल एक तरीके से खत्म कर दिया है। अब लोहरदगा की लड़ाई बीजेपी बनाम कांग्रेस की बनकर रह गई है।
चमरा की ताकत आदिवासी वोटर
उधर जेएमएम विधायक चमरा लिंडा ने भी अपनी ओर से पूरी ताकत लगा रखी है। आदिवासी वोटरों को लेकर राजनीति करने वाले चमरा ने आदिवासी वोटरों को अपनी ओर बांधकर रखने की पूरी कोशिश की है। उनके द्वारा लड़े गए तीन लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में उन्हे मिले वोट बताते है कि आदिवासियों के बीच उनकी पकड़ रही है। उन्होने इस चुनाव में अपना फोकस भी आदिवासी वोटरों पर ही रखा हुआ था लेकिन राहुल गांधी की सभा के बाद हवा बदलती नजर आ रही हैै, इस बीच चमरा अपने पुराने वोट बैंक को कैसे बांधकर रख पाते है ये देखना दिलचस्प होगा।