जी हाँ । इस बात के सौ साल से अधिक हो गए हैं । लोहरदगा से Netarhat तक का सफ़र ट्रेन के ज़रिए होने ही वाला था मगर मिल गया लालफिताशाही का रेड सिग्नल । बात आज से सौ साल पहले 1920 की है। उस समय के बिहार और ओडिशा के लोक निर्माण विभाग के सचिव सी बी मिलर ने रेलवे बोर्ड के सचिव को लंबी चिट्ठी लिख कर लोहरगा से नेतरहाट तक ट्रेन चलाने और नेतहरहाट को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की जरुरत बताई थी ।
नेतरहाट को समर कैपिटल बनाने की तैयारी
सी बी मिलर लिखते हैं “ नेतरहाट के मौसम और दूसरी सुविधाओं के बारे में मिस्टर स्टेनली ने 15 मई 1916 को एक चिट्ठी लिखी थी । “सारांश यह है कि नेतरहाट का मौसम राँची से कहीं बेहतर है जैसा कि राँची का पटना के मुक़ाबले बेहतर है । अप्रैल से जून की गर्मी के दौरान भी यहाँ का तापमान सेंट्रल प्रॉविंस के मुख्यालय पंचमढ़ी के मुक़ाबले कहीं कम रहता है । “
बदल जाती नेतरहाट की किस्मत
ज़ाहिर है नेतरहाट की तरक्की का रास्ता काफ़ी पहले खुल जाता है । देश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार लातेहार के इस पर्यटन क्षेत्र नेतहरहाट में जहां आज तक ट्रेन नहीं पहुँच पाई है वहाँ रेलवे लाइन का सपना एक सदी पहले ही देखा जा चुका था । ना सिर्फ सपना बल्कि बजट औऱ नक्शा तक तैयार हो चुका था । राष्ट्रीय अभिलेखागार के दस्तावेज़ों में इस नक्शे को आज भी देखा जा सकता है ।
यूरोपियन को पसंद दी नेतरहाट की आबोहवा
सी बी मिलर ने लिखा कि “बिहार और ओड़िशा के गवर्नर नेतरहाट गर्मियों में जाते रहे हैं। यहाँ रहने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं औऱ पहुँचना भी आसान नहीं है । हांलाकि नेतरहाट का मौसम यूरोपीय और भारतीय दोनों लोगों के लिए बेहतरीन है । अगर लोंगा तक रेलवे लाइन का विस्तार हो जाए तो इलाक़े का विकास में तेज़ी आ पाएगी ।” अंग्रोजों ने यहाँ गोल्फ कोर्स, राइडिंग, पोलो, शूटिंग समेत कई तरह के मनोरंजन का भी ख्वाब देख लिया था । बंगाल-नागपुर रेलवे के एजेंट ने क्लार्क कोलकाता के रईसों, अंग्रेज अधिकारियों को नेतरहाट की खूबसूरत वादियों में पहुँचाने की चाहत में रेलवे लाइन की योजना तैयार कर रहे थे । बिलासपुर, मरवाही और लोहरदगा के बीच रेलवे लाइन बनने से टिंबर के कारोबारियों को ख़ासा फ़ायदा होने वाला था ।
16 लाख रूपए का था बजट
जानकार हैरानी होगी कि 1920 में जब लोहरदगा-नेतरहाट के बीच ट्रेन चलाने का बजट तैयार किया गया था तब इसकी लागत थी सिर्फ १६ लाखर रुपए । जी हाँ सोलह लाख रुपए का इंतज़ाम भी हो जाता कि क्योंकि रेलवे बोर्ड ने आमदनी का भी जुगाड़ कर लिया था । फ़र्स्ट और सेकेंड क्लास के पैंसेजर से लगभग ३६ हज़ार रुपए जबकि थर्ड क्लास से लगभग डेढ़ लाख रुपए सालाना आमदनी का हिसाब लगाया था । यहीं नहीं माल ढुलाई से भी मुनाफ़ा इसलिए होने वाला था कि क्योंकि जंगल और इसके उत्पाद इस इलाक़े में बहुत ज्यादा होने की उम्मीद थी ।
और वर्ल्ड वार ने तोड़ दिया नेतरहाट का सपना
रेलवे बोर्ड , बंगाल-नागपुर रेलवे एजेंट और बिहार-ओड़िशा सरकार ने तो हरी झंडी दे ही दी थी मगर प्रथम विश्व युद्ध की वजह से अंग्रेजों की माली हालात इस रेलवे लाइन के निर्माण के लिए तैयार नहीं थी लिहाज़ा नेतरहाट समर कैपिटल बनते बनते रह गया और अधूरा रह गया रेलवे लाइन का सफ़र । पाठकों को मालूम होगा कि नेतहराट का सूर्योदय और सूर्यास्त देखने दुनिया भर से लोग आते हैं । आधुनिक सुविधाओं के आभाव, सार्वजनिक परिवहन की कमी के बीच झारखंड और आस पास के लोगों के बीच ही लोकप्रिय हो कर रह गया है नेतरहाट ।