Rajgir: जिस विश्वविद्यालय का सपना पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने देखा तो उसका सपना पूरा हो रहा है । बिहार के लिए ऐतिहासिक दिन है 19 जून । पांच पहाड़ियों और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर राजगीर आज विशेष उपलब्धियों का गवाह बनेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करीब दो हजार साल बाद पुनर्जीवित नालंदा विश्वविद्यालय का उद्घाटन करेंगे। इस महत्वपूर्ण समारोह में 17 देशों के राजदूत, देश की शीर्ष हस्तियां, बिहार के राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ अर्लेकर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल होंगे।
राजगीर और नालंदा विश्वविद्यालय ने प्रधानमंत्री और अन्य अतिथियों के स्वागत के लिए भव्य तैयारी की है। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं और पुलिस एवं प्रशासन द्वारा विश्वविद्यालय परिसर की कड़ी निगरानी की जा रही है। बिना पास या कार्ड के किसी को भी प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पांचवीं सदी में कुमार गुप्त प्रथम द्वारा की गई थी। यह विश्वविद्यालय 5वीं से 12वीं सदी तक दुनिया का प्रमुख शिक्षा केंद्र रहा है। आठ सौ साल बाद केंद्र सरकार और बिहार सरकार के संयुक्त प्रयास से इसे पुनर्जीवित किया गया है।
अब्दुल कलाम का सपना पूरा
पुनर्जीवित नालंदा विश्वविद्यालय के निर्माण में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विश्वविद्यालय भवन निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध कराई है। इसका डिजाइन प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भवनों से प्रेरित है और इसका पुस्तकालय और योगा भवन एशिया महादेश में अद्वितीय हैं।
नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण का विचार भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने 2006 में बिहार विधानसभा के एक संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए प्रस्तावित किया था। इसके बाद, बिहार सरकार ने तेजी से प्रतिक्रिया दी और 2007 में बिहार विधानसभा ने एक विधेयक पारित किया जिससे एक नए विश्वविद्यालय की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।
It’s a very special day for our education sector. At around 10:30 AM today, the new campus of the Nalanda University would be inaugurated at Rajgir. Nalanda has a strong connect with our glorious part. This university will surely go a long way in catering to the educational needs… pic.twitter.com/fUEXnKM1GJ
— Narendra Modi (@narendramodi) June 19, 2024
डॉक्टर मनमोहन सिंह की भूमिका अहम रही
सरकार ने विश्वविद्यालय के लिए 455 एकड़ भूमि आवंटित की और 25 नवंबर 2010 को इसे एक विशेष संसद अधिनियम के माध्यम से स्थापित किया गया, जिससे इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया गया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2016 में पिलखी गाँव, राजगीर में इसके स्थायी परिसर की नींव रखी, जो प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों के पास स्थित है।
अमर्त्य सेन रह चुके हैं चांसलर
नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन नए नालंदा विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे और गोपा सभरवाल पहली उप-कुलपति थीं। वर्तमान में, अरविंद पनगढ़िया विश्वविद्यालय के कुलपति हैं।
कार्बन मुक्त नेट जीरो कैंपस
नालंदा विश्वविद्यालय एक मात्र कार्बन मुक्त नेट जीरो कैंपस है। इसका डिजाइन पर्यावरण और वास्तुकला के अनुकूल है, और इसके परिसर में तालाबों की संख्या भी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के समान है। नालंदा की शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक पहचान प्राचीन काल से ही रही है।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास अत्यंत समृद्ध और महत्वपूर्ण है। यह विश्वविद्यालय प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षा केंद्रों में से एक था, जिसे पाँचवीं शताब्दी में स्थापित किया गया था।
स्थापना और विकास:
1. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त I (लगभग 450 CE) के शासनकाल में हुई थी। यह बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।
2. विकास: विश्वविद्यालय ने सातवीं से नौंवी शताब्दी के दौरान अद्वितीय विकास किया। हर्षवर्धन, पाल वंश के शासकों, और कई अन्य राजाओं ने इसका समर्थन किया।
शैक्षिक प्रणाली:
1. शिक्षा: नालंदा में विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी, जिनमें धर्मशास्त्र, तर्कशास्त्र, व्याकरण, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, और दर्शनशास्त्र शामिल थे।
2. प्रवेश: नालंदा में प्रवेश परीक्षा काफी कठिन होती थी और केवल उच्च योग्यता वाले छात्रों को ही प्रवेश मिलता था।
3. आचार्य: नालंदा में विश्वविख्यात विद्वान और शिक्षक थे, जिनमें नागार्जुन, धर्मकीर्ति, शांतरक्षित, और अतिशा जैसे विद्वान शामिल थे।
संरचना और भवन:
1. पुस्तकालय: नालंदा का पुस्तकालय अत्यंत विशाल और समृद्ध था, जिसे ‘धर्मगंज’ कहा जाता था। इसमें हजारों पांडुलिपियाँ और पुस्तकों का संग्रह था।
2. भवन**: नालंदा में अनेक मठ, मंदिर, अध्ययन कक्ष और पुस्तकालय भवन थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का पतन :
1. विनाश: कहा जाता है कि 12वीं शताब्दी में, बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में तुर्की सेना ने नालंदा पर आक्रमण किया और इसे नष्ट कर दिया। पुस्तकालय में आग लगाई गई और विद्वानों को मार डाला गया।
2. पुनर्जागरण: नालंदा का पुनर्जागरण आधुनिक समय में हुआ। भारत सरकार ने 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित करने का निर्णय लिया और 2014 में इसे औपचारिक रूप से खोला गया।
ऐतिहासिक महत्व:
1. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था और यहां अनेक देशों से विद्यार्थी और विद्वान अध्ययन करने आते थे।
2. वैश्विक प्रभाव: नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली और ज्ञान का वैश्विक प्रभाव था, जिसका प्रभाव चीन, तिब्बत, कोरिया, जापान और अन्य देशों में भी देखा जा सकता है।