पटना : बिहार के चार सीटों पर हुए लोकसभा चुनाव के बाद महागठबंधन का मनोबल बढ़ा नजर आ रहा है। बिहार के इन चार सीटों पर कम वोटिंग को एनडीए के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है। इस चुनाव में आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने एक नया प्रयोग किया, इसमें अपने पारंपरिक वोट से हटकर अन्य जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, खासकर कुशवाहा जाति के उम्मीदवार पर लालू यादव ने ज्यादा भरोसा किया या यू कहे तो दांव लगाया। इन चार सीटों में आरजेडी ने दो सीटों पर कुशवाहा जाति से उम्मीदवार देकर एक राजनीतिक प्रयोग किया। अपने वोट बैंक में अतिरिक्त वोटर को जोड़ने के मकसद से कुशवाहा उम्मीदवार को मैदान में उतारा। पहले चरण में वोटिंग को लेकर आये फीडबैक के बाद लालू अब इस प्रयोग को बड़े पैमाने पर कर रहे है।
पूर्वी चंपारण में कुशवाहा उम्मीदवार
पहले चरण की वोटिंग खत्म होने के बाद मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी ने पूर्वी चंपारण से राजेश कुमार को उम्मीदवार बनाने का एलान किया और उनको पार्टी का सिंबल सौपा। कुशवाहा जाति से आने वाले राजेश कुशवाहा को उम्मीदवार बनाकर लालू यादव ने पूर्वी चंपारण ही नहीं पूरे बिहार में इस बात को आगे बढ़ाया है कि लालू अब यादव-मुस्लिम के अलावा अपने वोट बैंक में अतिरिक्त वोट जोड़ने के गणित को आगे बढ़ा रहे है। राजेश कुमार पूर्वी चंपारण के केसरिया से पूर्व विधायक रह चुके है। 2015 के विधानसभा चुनाव में वो आरजेडी के सिंबल पर विधायक बनकर आये थे। पूर्वी चंपारण के चार लोकसभा सीटों पर कुशवाहा वोटरों की संख्या अच्छी खासी मानी जाती है। पिपरा, हरसिद्धि, केसरिया और मोतिहारी में कुशवाहा वोटर की संख्या ज्यादा है, या यू कहे तो कुशवाहा वोटर पूर्वी चंपारण में निर्णायक स्थिति में रहते है। इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव में ये सीट महागठबंधन के सदस्य उपेंद्र कुशवाहा को दिया गया था और उन्होने वर्तमान में कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बेटे आकाश को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वो बीजेपी के दिग्गज नेता राधा मोहन सिंह से चुनाव हार गए थे। कुशवाहा जाति को लेकर एक बात मानी जाती है कि वो अपने जाति के कैंडिडेट को खुलकर वोट करते है चाहे वो किसी भी दल में हो। इस लिहाज से महागठबंधन ने राजेश कुमार को मैदान में उतारकर राधा मोहन सिंह की मुश्किलें बढ़ा दी है। राजेश कुमार को आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव का करीबी माना जाता है और उन्हे बहुत पहले ही चुनाव की तैयारी करने का संदेश आरजेडी प्रमुख ने दे दिया था। लालू यादव के कहने पर ही मुकेश सहनी ने राजेश कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया है।
कुशवाहा कार्ड से एक तीर से कई निशान लगा रहे है लालू
लालू यादव अपने कुशवाहा कार्ड से अपने विरोधियों को छका रहे है, इसमें कोई संदेह नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जिस तरह से यादव कार्ड खेला था और आरजेडी के यादव वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी की थी उसका नुकसान आरजेडी को बहुत ज्यादा हुआ और परिणाम ये निकला कि आरजेडी का एक भी उम्मीदवार लोकसभा का चुनाव जीतकर नहीं आ सका वही एनडीए यादव जाति से आने वाले 5 सांसद चुनाव जीत गये, यही नहीं यादव वोट को अपने साथ जोड़ने का एनडीए को बिहार की सभी सीटों पर फायदा हुआ। 2020 बिहार विधानसभा चुनाव में जिस तरह से आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और तेजस्वी यादव का राजनीतिक कद बढ़ा उससे साफ हो गया कि यादव वोट बैंक एक बार फिर आरजेडी से जुड़ गया है। अब यादव-मुस्लिम के अपने समीकरण में अतिरिक्त वोट जोड़ने के मकसद से लालू ने अलग-अलग जातियों के उम्मीदवारों को टिकट दिया। खासकर कुशवाहा जाति के उम्मीदवार को उतारकर लालू ने एनडीए के दो नेताओं के राजनीतिक वजूद को चुनौती दी है। अबतक बिहार में कुशवाहा जाति के सबसे बड़े नेता माने जा रहे उपेंद्र कुशवाहा के साथ उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के लिए भी अब लालू यादव ने अपनी चाल से घेराबंदी कर दी है। अब इन दो नेताओं के सामने चुनौती है खासकर सरकार में नंबर दो का कद रखने वाले सम्राट चौधरी के सामने चुनौती है कि वो कुशवाहा वोटर को अपने साथ जोड़कर रखे और एनडीए के उम्मीदवार को जिताएं, खासकर उन सीटों पर जहां महागठबंधन ने कुशवाहा जाति के उम्मीदवार को खड़ा किया है। अगर ऐसा ये दोनों नेता कर नहीं पाते है, खासकर अगर सम्राट चौधरी अपने जाति के वोटरों को एनडीए के साथ खड़ा नहीं रख पाते तो उनके भविष्य की राजनीति पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह्र लग जाएगा। रही बात उपेंद्र कुशवाहा की तो उन्हे अपने लोकसभा क्षेत्र में ही घेर दिया गया है, भोजपुरी स्टार पवन सिंह के चुनाव मैदान में उतरने के साथ ही उनको अपने लिए लोकसभा की सीट सुरक्षित करने में बहुत पसीना बहाना पड़ेगा। इसका असर ये हो रहा है कि वो अन्य सीटों पर अपने सहयोगी दलों के उम्मीदवार के लिए वोट मांगने का समय नहीं निकाल पा रहे है, या यू कहे कि वो साइड लाइन हो गए है। पूर्वी चंपारण में महागठबंधन ने कुशवाहा जाति के उम्मीदवार को उतारकर अपने राजनीतिक प्रयोग को आगे बढ़ाया है। खासकर बात अगर पूर्वी चंपारण सीट की करे तो यहां लगभग 14 फीसदी मुस्लिम और 7 फीसदी यादव वोटर है और कुशवाहा वोटर को अपने साथ जोड़कर जो इस लोकसभा क्षेत्र में निर्णायक है महागठबंधन ने बीजेपी की राह मुश्किल कर दी है।