रांची : झारखंड में कर्मिशयल वाहनों की स्पीड पर रोक के नाम पर भ्रष्ट्राचार का खुला खेल हो रहा है। परिवहन विभाग के नाक के नीचे हो रहे इस खेल का शिकार हो रहे है कर्मिशल वाहनों के मालिक। ये सारा खल हो रहा है कार्मिशल वाहनों के स्पीड पर ब्रेक के नाम पर। वाहनों में एसएलडी नाम पर लूट का खेल चल रहा है।
दरअसल परिवहन विभाग ने तुगलकी फरमान जारी कर सभी व्यावसायिक वाहनों में एसएलडी लगाने का आदेश दे दिया, जबकि पुराने आदेश के अनुसार तील साल पहले ही कर्मिशयल गाड़ियों में एसएलडी लगाया गया था। इस बार अपने नये आदेश में परिवहन विभाग ने चार कंपनियों को गति नियंत्रण उपकरण लगाने के लिए अधिकृत किया है। इन चार कंपनियों से ही व्यावसायिक वाहनों के लिए गति नियंत्रण उपकरण खरीदना है। ऐसा नहीं है कि बाजार में बिक रहे एसएलडी को खरीद कर लगा देना है। गति नियंत्रण उपकरण के नाम पर पैसे की वसूली हो रही है, जो एसएलडी 800 रूपये में बाजार में उपलब्ध होता है उसके लिए 4 हजार से 5 हजार रूपये तक की वसूली हो रही है।
भ्रष्ट्राचार के इस खेल में ऑनलाइन इंट्री और प्रमाण पत्र के नाम पर ही वाहन मालिकों का दोहन हो रहा है। पहले से लगे ऑफ लाइन एसएलडी के बाद अब ऑन लाइन गति नियंत्रण उपकरण लगाने के नाम पर सारा खेल हो रहा है। ट्रक-बस समेत अन्य व्यावसायिक वाहनों के मालिकों को 6 साल पहले ही गति नियंत्रण उपकरण लगाने का आदेश दिया गया था जिसके बाद उन्होने अपने वाहनों में एसएलडी लगा लिया था अब फिर से उन्हे एसएलडी लगाने का दवाब दिया जा रहा है जिससे उनपर आर्थिक और मानसिक दवाब बढ़ गया है।
परिवहन विभाग के नया आदेश संदेह के घेरे में इसलिए भी आता है कि झारखंड के अलावा अन्य राज्यों में पहले से गति नियंत्रण उपकरण लगे वाहनों को फिर से गति नियंत्रण लगाने का कोई निर्देश नहीं है। झारखंड में 4000 कर्मिशयल बस रजिस्टर है और ट्रक एवं दूसरे कर्मिशयल वाहनों की संख्या लाखों में है एक तरफ उनके मालिकों पर एसएलडी लगाने का दवाब है दूसरी ओर परिवहन विभाग के इस आदेश से करोड़ों रूपये का खेल हो रहा है।