झारखंड सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। प्रदेश के राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार मंत्री दीपक बिरुआ ने सदन में कहा कि भाजपा सरकार में रैयतों या भू-स्वामियों की ऐसी जमीन जिन्हें लैंड बैंक में जमा किया गया था, वह आने वाले दिनों में वापस होगी। राज्य सरकार इसपर विचार कर रही है। राज्य में आज लोग भूमि का कमर्शियल उपयोग कर रहे हैं। सरकार के पास यह मामला विचाराधीन है। सरकार आने वाले दिनों में कमर्शियल टैक्स लगाने पर गंभीरतापूर्वक विचार कर रही है।
कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव, विधायक स्टीफन मरांडी ने खासमहाल की जमीन से संबंधित मामले को सदन में रखा। मंत्री ने कहा कि इसे लेकर राजस्व परिषद की अध्यक्षता में कमेटी बनी है। वह अंतिम स्तर पर है। रिपोर्ट आने के बाद सरकार इसका समाधान करेगी। बिरुआ ने कहा कि साल 1884 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम को वर्ष 2013 में महागठबंधन की सरकार ने एक नए रूप में पेश किया था।
उस कानून को पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने बदल कर कानून की मूल भावना को ही खत्म कर दिया। आदिवासी-मूलवासी की जमीन को छीनने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि जमीन विवाद के कारण विधि व्यवस्था बिगड़ती है। दाखिल-खारिज के मामले को लेकर विभागीय स्तर पर समय-समय पर समीक्षा हो रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इसे लेकर गंभीर हैं।
2013 का कानून मजबूती से लागू हो : मुर्मू
विधायक हेमलाल मुर्मू ने कटौती प्रस्ताव के विरोध में कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून- 2013 का भाजपा शासन में संशोधन किया गया। इससे आदिवासियों के अधिकारों को खत्म करने की कोशिश हुई। उन्होंने 2013 के कानून को मजबूती से लागू करने की मांग की। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि कानून में ग्रामसभा की उपस्थिति एक तिहाई को बदल कर कम से कम 50 प्रतिशत की उपस्थिति जोड़ें।
स्थानीय लोगों के रोजगार कानून का उल्लंघन: रौशन
विधायक रौशन लाल चौधरी ने कहा कि बजट में भू-राजस्व, पथ, सड़क और परिवहन विभाग के लिए कोई नई योजना नहीं है। साफ है कि राज्य के विकास के प्रति कितनी गंभीर है। राज्य में विस्थापन का मुद्दा चरम पर है। विस्थापितों को मुआवजा दिए बिना भूमि अधिग्रहण की जा रही है। कोल ब्लॉक में हो रहे खनन कार्य में 75 लोकल लोगों को रोजगार देने के कानून का खुलकर उल्लंघन हो रहा है।