रांचीः झारखंड में हर व्यक्ति को 209 ग्राम ही दूध मिल पाता है । जबकि राष्ट्रीय औसत है 471 ग्राम प्रति दिन । सालाना आमदनी भी सिक्कम और गोवा जैसे छोटे राज्यों की अपेक्षा बेहद कम है । गोवा में हर व्यक्ति सालाना 5,87,743 है तो सिक्कम में 4,92,648 रुपए । जबकि झारखंड के लोग सालाना 1,05,274 रुपए ही कमाते हैं यानि प्रति दिन 288 रुपए । मनरेगा मजदूर से भी कम । ये आंकड़े राज्य के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने 16वेें वित्त आयोग के सामने पेश किया तो आदिवासी बहुल राज्य की गरीबी की दास्तां सबके सामने आ गई ।
3 लाख करोड़ रुपए की डिमांड
16वें वित्त आयोग की टीम देवघर में बाबा बैद्यनाथ का पूजा-पाठ करने के बाद रांची के रेडिशन होटल में पहुंची तो झारखंड सरकार की ओर से स्वागत किया गया । वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने राज्य का बही-खाता सामने रखा तो गरीबी की कहानी अरविंद पनगढ़िया और उनकी टीम ने सुनी । वित्त मंत्री ने बताया कि कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे सभी क्षेत्रों में झारखंड को केंद्र की ओर से राशि पर्याप्त मिलनी चाहिए । उन्होंने मांग की कि 3 लाख 3 हजार 527.44 करोड़ रुपए बाकी है जिसे जल्द से जल्द दिया जाए ।
अरविंद पनगढ़िया ने कहा चुनाव नहीं तो पैसे नहीं मिले
16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने बताया कि 15वें वित्त आयोग की शर्त के मुताबिक स्थानीय ईकाई का चुनाव अगर नहीं होता है तो दो वर्ष बाद जो राशि आवंटित होती है उसे रोक दिया जाए इसलिए झारखंड की राशि अटकी हुई है । उन्होंने ये भी कहा झारखंड में अगर चुनाव हो जाते हैं तो ये राशि दी जाएगी ।
झारखंड-ओडिशा बॉडर से लूटा गया विस्फोटक बरामद, चाईबासा पुलिस को मिली बड़ी कामयाबी
अलका तिवारी ने जीएसटी का मुद्दा उठाया
मुख्य सचिव अलका तिवारी ने जीएसटी का मुद्दा उठाते हुए कहा कि झारखंड कुल क्षेत्रफल का 30 प्रतिशत भू-भाग वनों से आच्छादित है। राज्य की अधिकांश बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं को वन/पर्यावरण स्वीकृति की सख्त प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिससे परियोजना में देरी होती है एवं परियोजना की लागत बढ़ जाती है। उनके द्वारा कहा गया कि झारखंड खनिजों से समृद्ध है एवं देश के कुल खनिज का लगभग 40 प्रतिशत खनिज यहां पाया जाता है, लेकिन राज्य को उसके अनुरूप लाभ नहीं मिल पाता है। कोयला कंपनियों पर राज्य को भूमि मुआवजा, रॉयल्टी आदि मद में बहुत बड़ी देनदारियां बकाया है।
भूमि अधिग्रहण, वायु/जल प्रदूषण, कृषि उत्पादकता, स्वास्थ्य जैसी समस्याओं के अतिरिक्त स्थानीय लोगों को विस्थापन की कीमत भी चुकानी पड़ रही है। झारखंड पारंपरिक रूप से देश का निर्माण केंद्र रहा है। देश का प्रथम इस्पात संयंत्र झारखंड के जमशेदपुर में स्थापित किया गया था। आयोग का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया गया कि जीएसटी उपभोक्ता राज्यों के लिए फायेदेमंद है एवं उत्पादक राज्य के रूप में झारखंड को वर्ष 2025-26 से 2029-30 तक कुल 61,677 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है।
झारखंड की ओर 16वें वित्त आयोग से प्रमुख मांगें की गई हैं
🔸 कृषि व जल संकट:
झारखंड की 70-80% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है, लेकिन राज्य में सिंचाई की व्यवस्था सीमित है। 80% वर्षा जल बहकर चला जाता है। जल संचयन के लिए केंद्र से विशेष सहायता की मांग की गई है।
🔸 उग्रवाद पर नियंत्रण:
राज्य में अब भी उग्रवाद की जड़ें बनी हुई हैं। लगभग 200 सुरक्षा शिविर उग्रवाद-प्रभावित क्षेत्रों में हैं। राज्य सरकार ने विशेष केंद्रीय सहायता और SRE (Security Related Expenditure) के तहत निरंतर सहयोग की अपील की है।
🔸 स्वास्थ्य व पोषण:
NFHS-5 रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 65% महिलाएं एनीमिक हैं और लगभग 40% बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं। झारखंड ने स्वास्थ्य क्षेत्र में मानव संसाधनों और बुनियादी ढांचे के लिए केंद्रीय सहयोग मांगा है।
🔸 सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर:
राज्य के दुर्गम पहाड़ी व वन क्षेत्रों में सड़क निर्माण चुनौतीपूर्ण है। सरकार ने 21,000 किमी नई सड़कें और 26,000 किमी पुरानी सड़कों के उन्नयन के लिए केंद्र से सहयोग मांगा है।
🔸 शिक्षा क्षेत्र:
राज्य में कुल 38 विश्वविद्यालय हैं जबकि राष्ट्रीय स्तर पर संख्या 1,317 है। उच्च शिक्षा में नामांकन दर झारखंड में केवल 20% है। राज्य ने उच्च शिक्षा में निवेश के लिए केंद्र से सहयोग मांगा है।
🔸 राजस्व और वित्तीय स्थिति:
राज्य की प्रति व्यक्ति आय ₹1,05,274 है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। झारखंड वित्तीय अनुशासन के साथ काम कर रहा है, लेकिन विकास के लिए अतिरिक्त सहायता जरूरी है।
🔸 केंद्र प्रायोजित योजनाओं में लंबित राशि:
-
मनरेगा: ₹1,300 करोड़
-
जल जीवन मिशन: ₹5,235 करोड़
-
राष्ट्रीय पेंशन योजनाएं: ₹78 करोड़
-
GST क्षतिपूर्ति घाटा: ₹61,677 करोड़
-
कोल कंपनियों से बकाया: ₹1,36,042 करोड़
राज्य सरकार की मांगें:
-
केंद्र से मिलने वाले कर हिस्से को 41% से बढ़ाकर 55% किया जाए।
-
वन क्षेत्र वाले राज्यों को अतिरिक्त संसाधन दिए जाएं।
-
जल संकट, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में विशेष पैकेज दिया जाए।