शारदा सिन्हा चली गई । जिस आवाज ने छठ व्रतियों को ऊर्जा दी , जिन गीतों के सहारे पीढ़ियों ने दुनिया के सबसे मुश्किल व्रतों में एक छठ पूजा को पार लगा दिया उसे आवाज़ की मालकिन दुनिया के उस पार चली गई । दुनिया के उस पार जहां सूरज है चाँद है। जहां अब शारदा सिन्हा हैं । आज के दौर की हर पीढ़ी को अपने बचपन के छठ घाटों में इस बात का पूरा यकीन था कि शारदा सिन्हा गा रही हैं तो सूरज जरुर उगेगा और उनकी मां का व्रत पूरा होगा , ठेकुआ मिलेगा । शारदा सिन्हा दशकों से श्रद्धा के रास्ते कानों से गुजरते हुए दिल में आस्था पैदा करने की पर्याय बन चुकी थी। अब वो हमारे बीच नहीं है ।
वो पर्यायवाची थी । एक ऐसे पर्व की जिसमें सिर्फ पवित्रता ही पर्याय है और तन-मन क की शुद्घता मूल मंत्र । हमेशा चेहरे पर मुस्कान , माथे पर बड़ी सी बिंदी और मुंह में पान की लाली लिए शारदा सिन्हा की कोई और दूसरी तस्वीर किसी को याद तक नहीं होगी.. जहां भी दिखी.. जब भी दिखी ऊर्जावान… तेज लिए… जैसे सूरज चमक रहा हो.. आभा पैदा कर रहा हो उनके चारों ओर.. शारदा सिन्हा उसी आभा में विलिन हो गई । शायद छठी मइया साक्षात शारदा सिन्हा से वो गीत सुनना चाहती थीं जिसने सूरज देवता को हर बार उगने के लिए मजबूर किया.. ।
ग्रामोफ़ोन से टेप रिकॉर्डर, टेप रिकॉर्डर से सीडी और सीडी से सीधे एमपी३ में गीतों की दुनिया भले ही बदल गई हो लेकिन वो आवाज नहीं बदल पाई जिसने लाखों छठ घाटों में करोड़ों लोगों के दिलों में आस्था के महापर्व की मिठास घोली है, जिस शारदा सिन्हा को बच्चे सुनते-सुनते बड़े हुए और बड़े होते होते बुजुर्ग हो गए वे भी आज यकीन नहीं कर पा रहे हैं कि जिस छठी मईयां ने शारदा सिन्हा को बतौर वरदान बिहार की धरती पर भेजा था उसे वापस कैसे माँग लिया.. शारदा सिन्हा चली गई… उस पार चली गई जहां चाँद है सूरज है…