रांची : हरियाणा में 12 मार्च को जो मुख्यमंत्री के बदलने का सियासी खेल हुआ उसको सभी ने राजनीति और बीजेपी के लोकसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा समझा। मनोहर लाल खट्टर की जगह नायाब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना दिया गया, सुबह इस्तीफा और शाम में राज्यपाल ने शपथ दिला दिया। लेकिन कुछ ऐसी राजनीति स्थिति झारखंड में भी बदलने वाली थी लेकिन उस समय इस तरह का माहौल बना दिया गया कि झारखंड मुक्ति मोर्चा उसका तोड़ नहीं निकाल सकी।
बीजेपी सांसद निशिकातं दूबे और प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कल्पना को मुख्यमंत्री नहीं बनाये जाने को लेकर तमाम राजनीति तर्क से लेकर संवैधानिक और कानूनी दावपेंच के कई बयान दिये और सोशल मीडिया पर कई तरह के पोस्ट भी किये। गांडेय सीट से सरफराज अहमद के इस्तीफे को कल्पना सोरेन के मुख्यमंत्री बनने से जोड़ते हुए वहां उपचुनाव नहीं कराने और एक साल से कम समय विधानसभा के कार्यकाल की अवधि का तर्क देते हुए गैर विधानसभा सदस्य को मुख्यमंत्री नहीं बनाने का प्रेशर राजनीतिक रूप से बनाया। राज्यपाल को सुप्रीम कोर्ट के पुराने जजमेंट का हवाला देते हुए कई बार मांग रखी की वो विधानसभा के गैर सदस्य को एक साल से कम कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री नहीं बनाये। निशिकांत दुबे ने उस समय उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे देने तक का जिक्र उसमें किया।
निशिकांत दुबे ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट एसआर चौधरी वर्सेज स्टेट ऑफ पंजाब के अनुसार यदि 6 महीने के अंदर कल्पना सोरेन जी नहीं बनती है तो वो मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं ले सकती और काटोल विधानसभा के लिए मुंबई हाईकोर्ट के जजमेंट के अनुसार गांडेय या झारखंड के किसी भी विधानसभा का चुनाव नहीं हो सकता है, राज्यपाल और चुनाव आयोग कानूनी राय ले।
निशिकांत दुबे के पुराने स्टेटमेंट को ही अगर आधार बनाया जाए तो हरियाणा में नये मुख्यमंत्री पद का शपथग्रहण नहीं होना चाहिए था। क्योकि वहां भी विधानसभा का कार्यकाल झारखंड विधानसभा के साथ ही खत्म हो रहा है, जबकि निशिकांत दुबे ने ये बाते जनवरी में कही थी अब हरियाणा में मुख्यमंत्री का बदलाव मार्च में हुआ है यानि दो महीने और कम का कार्यकाल रह गया है।
उस वक्त निशिकांत दुबे और बीजेपी की ओर से बनाये जा रहे दवाब की वजह से ही तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन की जगह चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। जबकि एक विधायक दल की बैठक में कल्पना शामिल हुई थी, लेकिन किसी तरह का कोई संवैधानिक संकट न उत्पन्न हो और सरकार पर कोई खतरा नहीं हो इसलिए कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। अगर हरियणा में ऐसा किया गया है तो फिर ये कानूनी पेंच फंस सकता है क्याकि वहां के मुख्यमंत्री अभी विधानसभा के सदस्य नहीं है, वो सांसद है। विधानसभा का कार्यकाल आठ महीने का रह गया है, ऐसे में वहां उपचुनाव हो नहीं सकता है और मुख्यमंत्री को 6 महीने के अंदर सदन का सदस्य होना आवश्यक है, तो क्या हरियाणा में विधानसभा चुनाव समय से पहले हो जाएंगे या फिर चुनाव से पहले हरियाणा को एक और नया मुख्यमंत्री मिलेगा।