प्रवर्तन निदेशालय यानि इन्फोर्समेंट डॉयरेक्टोरेट देश की सियासी गलियारे में ऐसा शब्द है जिसका नाम सुनते ही बड़े-बड़े दिग्गजों के होश फाख्ता हो जाते हैं । ईडी का झारखंड से तो और खास नाता है । नाता इसलिए क्योंकि ईडी के प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग केस की बोहनी झारखंड से ही हुई थी । जी हां बहुतों को ये जानकारी नहीं होगी कि प्रवर्तन निदेशालय की सबसे बड़ी कामयाबी जो मिली वो झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा केस में ही मिली । इस मुकमदे में ईडी का केस पहली बार सजा के तौर पर सामने आया । साल 2017 में रांची में ईडी की विशेष अदालत ने पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के कार्यालय के दौरान मंत्री रहे हरिनारायण राय को सात साल की जेल की सजा सुनाई थी । इसके साथ ही यह केस इतिहास में दर्ज हो गया । इतना ही नहीं पूर्व मंत्री एनोस एक्का को भी सजा हुई थी और एनोस की संपत्ति में आज झारखंड में ईडी का कार्यालय है । इडी के इसी दफ्तर में झारखंड पार्टी का कार्यालय हुआ करता था ।
ताजा मामला मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनसे जुड़े लोगों पर ईडी के शिकंजे का है । ईडी के नोटिस पर नोटिस के जवाब में सीएम हेमंत सोरेन का पेश नहीं होने पर सियासी बवाल है । उनके कई करीबियों पर छापेमारी भी हुई । बहरहाल सवाल ये है कि दशकों तक ईडी का नाम ठंडे बस्से में था, बोफोर्स दलाली जैसे केस की जांच कर
रही वित्त मंत्रालय के अधीन काम करने वाली यह एजेंसी रांची, हजारीबाग और साहिबगंज जैसे छोटे शहरों में इस तरह दबिश देगी किसी ने सोचा भी नहीं था । मगर कानून में बदलाव ने इसे इतनी शक्तियां दे दी की देश का बड़ा से बड़ा नेता ख्वाब में भी ईडी का नाम सुन खौफ में आ जाता है ।
प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना फॉरेन एक्सचेंज रेग्यूलेशन एक्ट -1947 के तहत हुई जो 1957 से 1973 फेरा कानूनों के उल्लघंन के खिलाफ कार्रवाई करता रहा । 1973 में फेरा कानूनों में संशोधन के बाद गिरफ्तारी और कहीं भी सर्च करने का शक्ति मिल गई, हांलाकि तब तक ईडी का दायरा कॉरपोरेट वर्ल्ड तक ही सीमित रहा ।
उदारीकरण के बाद 1999 में फेरा की जगह आया फेमा यानि फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट जिसके तहत फॉरेक्स नियमों के उल्लघंन को सिविल कानूनों के तहत रख दिया गया और ईडी द्वारा गिरफ्तारी की शक्ति खत्म हो गई ।
9/11 के बाद पूरी दुनिया में आतंकी संगठनों को मिलने वाली वित्तीय मदद पर लगाम की शुरुआत हुई जिसके बाद भारत को भी प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉड्रिंग एक्ट बनाना पड़ा । 2005 में बने इस कानून के बाद ईडी को बड़ी शक्तियां मिल गई। कानून बनने के बाद पहली बार मधु कोड़ा केस में सफलता मिली और केस सजा तक पहुंचा ।
PMLA ऐसा कानून है जिसके तहत ईडी के सामने दिया गया बयान अदालत में बतौर सबूत मान्य होता है । हांलाकि सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में ईडी के इस प्रावधान को खत्म कर दिया जिसके तहत उसी आरोपी को जमानत मिल सकती थी जिसे अदालत समझता हो कि वो बेगुनाह है ।
ईडी की सबसे ताकतवर शक्ति जिस पर विवाद भी है वो है गिरफ्तारी का अधिकार और संपत्ति को जब्त करने का क्षमता । ईडी को अगर लगता है कि अवैध तरीके से की गई कमाई से अर्जित संपत्ति है तो एजेंसी उसे जब्त कर सकता है । इतना ही नहीं अपनी बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी आरोपी पर ही होती है ना कि अभियोजन पक्ष की ।
जानकार हैरानी होगी कि ईडी 2002-2017 के बीच सिर्फ दो ही मुकमदों का अंजाम सजा तक पहुंचा पाई थी जबकि 2009 में 11 मामले में सजा मिली ।