कर्पूरी ठाकुर . को भारत रत्न के ऐलान के साथ ही बिहार की सियासी हवा बदल गई है । कभी भी पराजित नहीं होने वाले विधायक, दो बार के उपमुख्यमंत्री, ढाई साल के मुख्यमंत्री और सामाजिक सुधारों के जननायक कर्पूरी ठाकुर की कहानी बिहार के राजनीतिक इतिहास के उस दौर की दास्तां है जिस दौर में अगर कर्पूरी नहीं होते तो सामाजिक न्याय का नारा भी आज इतनी बुलंदी के साथ सुनाई नहीं देता ।
पुल और घाट टैक्स खत्म करने की कहानी
कर्पूरी ठाकुर की जीवनी लिखने वाले अशोक कुमार सिन्हा की किताब में उनसे जुड़ी कई ऐसी कहानियां जो आज के राजनीतिक हालात के लिए एक आदर्श के तौर पर काम कर सकती है । ऐसी ही एक कहानी है वे समस्तीपुर जा रहे थे रास्ते में उन्होंने देखा की मछली बेचने वाली महिलाओं से टैक्स लिया जा रहा था उन्होंने दूसरे ही दिन कैबिनेट बैठक बुलाकर पुल और घाट पर जो टैक्स लगता था उसे खत्म किया । कर्पूरी ठाकुर ने अपने अधिकारियों की एक नहीं सुनी ।
परिवारवाद के खिलाफ थे कर्पूरी ठाकुर
ऐसी ही एक दिलचस्प कहानी थी परिवारवाद से जुड़ी है । आज जब की लगभग हर दल में नेताओं में अपने बच्चों को राजनीतिक तौर से सेट करने की होड़ है वैसे में कर्पूरी ठाकुर एक मिसाल की तरह हैं । बात 1985 की है। बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थी । कर्पूरी ठाकुर लोकदल में थे । जगेश्वर मंडल जो कि लोकदल के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष थे और संसदीय बोर्ड को टिकट बंटवारे की जिम्मेदारी दी गई थी । राज नारायण को दिल्ली से पटना प्रभारी बना कर भेजा गया था । जब टिकट बंटवारा हो गया तो कर्पूरी ठाकुर को किसी ने बताया कि टिकट बंटवारा हो चुका है आपको समस्तीपुर से और आपके बेटे रामनाथ ठाकुर को कल्याणपुर से टिकट दिया गया है । ऐसा सुनते ही कर्पूरी ठाकुर सीधे पटना एयरपोर्ट पहुंच गए और प्लेन तक पहुंच गए । उस दौर में रनवे तक पहुंचना मुश्किल नहीं होता था । उन्होंने राज नारायण से उम्मीदवारों से सूची मांग ली । जब कर्पूरी ठाकुर ने देखा कि इस लिस्ट में उनके बेटे रामनाथ ठाकुर का नाम है तो उन्होंने लिस्ट में लिख दिया कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे । ऐसा सुन लोकदल में हड़कंप मच गया । कर्पूरी ठाकुर ने पार्टी के नेताओं ने पूछा कि लोकदल का भविष्य क्या होगा । बड़े -बड़े नेता समझाने लगे । उन्होंने शीर्ष नेताओं से कहा कि मैं रामनाथ का टिकट नहीं काट सकता हूं क्योंकि वो वर्षों से राजनीति में है लेकिन मुझे टिकट नहीं मिलना चाहिए क्योंकि अगर हम दोनों ने चुनाव लड़ा तो संदेश गलत जाएगा और परिवारवाद का आरोप लगेगा । आखिरकार थकहार कर लोकदल को कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर का टिकट कल्याणपुर से काटना पड़ा ।
जाहिर सी बात है कर्पूरी ठाकुर ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ जो संघर्ष किया उसकी मिसाल देश की राजनीति में बिरले मिलता है ।
स्त्रीकाल‘ पर कर्पूरी ठाकुर की जीवनी के लेखक अशोक कुमार सिन्हा से अरुण नारायण से बातचीत पर आधारित