रांचीः देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की 140वीं जयंती पर देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है । कांग्रेस के कार्यकर्ता से लेकर संविधान सभा के अध्यक्ष और देश के राष्ट्रपति बनने तक राजेंद्र प्रसाद का लगाव झारखंड और यहां के आदिवासियों से हमेशा बना रहा । वे लगातार झारखंड जो उस वक्त संयुक्त बिहार में था के लोगों की आवाज अलग-अलग मंचों पर बुलंद करते रहे। उनकी पुरानी चिठ्ठियों को खंगालने पर मालूम चलता है कि वे देश के इस पिछड़े इलाके को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कितने उत्सुक और प्रयासरत थे ।
जब राजेंद्र प्रसाद ने दिया 1 हजार का चेक
आदिवासियों के लिए कई कदम उठाए
आजादी से पहले रांची और आस-पास के जिलों के लिए कांग्रेस के नेता रांची एब्रोजिनल वर्क और गुमला सेवा केंद्र जैसे संस्थान चलाते थे जहां शिक्षा के साथ साथ स्वरोजगार का काम चलता था । डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद गुमला, रांची में कांग्रेस कार्यकर्ताओं, नेताओं और यहां के संस्थानों से लगातार संपर्क में रहते थे । आजादी मिलने के दो दशक पहले से वे इस इलाके में आते रहे हैं । खास तौर से गुमला सेवा केंद्र में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की बड़ी भूमिका रही है । वे गुमला सेवा केंद्र के लिए ना सिर्फ चंदा देते रहे बल्कि चंदा मांगते भी रहे। हरिजन सेवा संघ को राजेंद्र बाबू ने एक बार आदिवासियों की सेवा के लिए एक हजार रुपए चंदा दिया । उस दौर में एक हजार रुपए की कीमत बहुत मानी जाती थी ।
सिंदरी और धनबाद में प्रथम राष्ट्रपति
राष्ट्रपति बनने के बाद भी राजेंद्र बाबू को जब भी मौका मिला तो वे झारखंड के संस्थानों में आते रहे । खासतौर से इंडियन स्कूल ऑफ माइंस और फ्यूल रिसर्च इंस्टीट्यूट में उनका आना हुआ । फ्यूल रिसर्च इंस्टीट्यूट में तो राजेंद्र बाबू को शिलान्यास में भी आना था लेकिन वे तबीयत खराब होने की वजह से नहीं आ सके डॉक्टर होमी भाभा ने शिलान्यास किया । बाद में 22 अप्रैल 1952 को वे सिंदरी आए और लंबा भाषण दिया । इतना ही नहीं उस वक्त प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु भी उनके साथ थे । धनबाद के लिए बड़ा मौका था जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों एक साथ पहुंचे थे । राजेंद्र बाबू ने 1 अप्रैल 195 को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ माइंस में भी संबोधन दिया था ।
गालियों का जवाब ऐसे देते थे राजेंद्र बाबू
राजेंद्र प्रसाद अपने विरोधियों और आक्रोश का जवाब भी सलीके से देते थे। ऐसा ही एक मामला तब आया जब मध्य बिहार के प्रतिनिधि रामनारायाण सिंह ने खरी खोटी सुनाते हुए राजेंद्र प्रसाद को चिठ्ठी लिखी। रामनारायण सिंह ने श्रीकृष्ण सिंह और कृष्णवल्लभ सहाय को शासक बनाने का विरोध करते हुए राजेंद्र बाबू को लिखा था कि चोर चकार शासक बने यह मैं बर्दाश्त नहीं करूंगा ।
रामनारायण सिंह ने यह चिट्ठी 17 मई 1946 को लिखी थी। राजेंद्र बाबू ने चिट्ठी लिख कर जवाब दिया । आप गुस्से में हैं मेरी समझ नहीं आता कि क्या उत्तर दूं। गालियों का उत्तर कुछ हो ही नहीं सकता । गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि किसी विषय के संबंध में बहुत घ्यान करते रहने से उस पर आसक्ति हो जाती है और इच्छा पूरी नहीं होने पर क्रोध होता और क्रोध से मोह हो जाता है और अंत मे बहुत अनर्थ हो जाता है । आप इस समय इसी प्रकार के क्रोध में हैं । मैं अब भी कहूंगा आप ठंडे दिल से सब बातों पर विचार कीजिए । यदि आपको कृष्ण वल्लभ बाबू के संबंध में कोई शिकायत है तो उन्हें एक दो करके लिखिए उनकी जांच होगी ।
देश के प्रथम राष्ट्रपति और महान स्वतंत्रता सेनानी भारत रत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की जयंती पर शत-शत नमन। pic.twitter.com/4I7VdStgir
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) December 3, 2024