रांची : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन का 80वां जन्मदिन बड़े ही धूमधाम से उनके मोराबादी स्थित आवास पर मनाया गया। जन्मदिन के मौके पर 80 पाउंड का केक काटा गया। ढ़ोल नगाड़ों के बीच जश्न के साथ राज्यसभा सांसद शिबू सोरेन का जन्मदिन मनाया गया। इस मौके पर उनके बेटे और राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद थे। उन्हे पिता को केके खिलाया और उनसे आर्शीवाद लिया। उनके छोटे बेटे बसंत सोरेन, झामूमो महासचिव विनोद पांडे, राज्यसभा सांसद महुआ माजी समेत बड़ी संख्या में नेता और कार्यकर्ता उनके आवास पहुंचे और जन्मदिन के जश्न में शामिल हुए।
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झारखंड निर्माताओं में सबसे अग्रणी माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और जेएमएम के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन का जन्म रामगढ़ के नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को हुआ था।
बचपन में शिबू सोरेन का नाम शिवलाल था
27 नवंबर 1957 को महाजनों ने उनके पिता सोबरन सोरेन की हत्या कर दी, उनके पिता गांधीवादी थे और महाजनों द्वारा जमीन कब्जा किये जाने का विरोध करते थे।
पति की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।
युवा अवस्था में अपना पहला चुनाव मुखिया का लड़ा, लेकिन धोखे से उन्हे हरा दिया गया।
संताल में युवाओं को एकजुट करने के लिए संताल नवयुवक संघ बनाया
संताल की जमीन पर महाजनों के कब्जे का विरोध करते हुए धानकटनी आंदोलन आरंभ किया।
टुंडी और उसके आसपास महाजनों के कब्जे से संतालों की जमीन को मुक्त कराया, टुंडी में उनकी समानांतर सरकार चलती थी।
तोपचांची के जंगल के पास दारोगा की हत्या के बाद किसी भी कीमत पर इन्हे पकड़ने का सरकार ने आदेश दिया।
धनबाद के तत्कालीन उपायुक्त केबी सक्सेना ने इन्हे मुख्य धारा में शामिल करवाया।
1973 में विनोद बिहारी महतो और एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा बनाई और विनोद बिहारी महतो को इसका अध्यक्ष बनाया।
1977 में गुरू जी ने टुंडी से पहला विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन वो हार गए।
विनोद बिहारी महतो के अलग होने के बाद उन्होने निर्मल महतो को जेएमएम का अध्यक्ष बनाया।
1987 में निर्मल महतो की हत्या के बाद खुद पार्टी के अध्यक्ष बने और शैलेंद्र महतो को महासचिव बनाया।
1993 में तत्कालीन नरसिंह राव की सरकार को बचाने के लिए शिबू सोरेन और उनके सांसदों पर गंभीर आरोप लगाए गए।
9 अगस्त 1995 को वो जैक के अध्यक्ष बने।
1999 में वो लोकसभा का चुनाव हार गए थे इसलिए 2000 में झारखंड विधेयक पारित होते समय लोकसभा में मौजूद नहीं थे।
2 मार्च 2005 को वो पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और बहुमत साबित नहीं करने की वजह से इस्तीफा दे दिया।
27 अगस्त 2008 को वो दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, 6 महीने के अंदर उन्हे किसी भी विधानसभा का सदस्य होना था लेकिन 9 जनवरी 2009 को वो मुख्यमंत्री रहते हुए तमाड़ से चुनाव हार गए थे।
2014 में मोदी लहर के बावजूद वो दुमका से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद में गए।
2019 में वो दुमका से लोकसभा का चुनाव हार गए और फिर राज्यसभा के सदस्य के रूप में जेएमएम ने उन्हे संसद भेजा। वर्तमान में वो राज्यसभा के सदस्य है।