रांचीः केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला कर लिया है। इसके बाद पक्ष विपक्ष दोनों ओर से इसपर क्रेडिट लेने की होड़ चल रही है। वहीं दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इस फैसले के बाद एक बड़ा बयान जारी कर दिया है। पार्टी के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडे से कहा है कि बिना सरना धर्म कोड के जातिगत जनगणना झारखंड में नहीं होने देंगे।
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विनोद पांडे की ओर से जारी किये गये पत्र में कहा गया है कि सरना धर्म कोड या आदिवासी धर्म कोड के बिना झारखंड में जातिगत जनगणना नहीं होने देंगे। सरना धर्म कोड लागू किये बिना जातिगत जनगणना कराये जाने के विरोध में झारखंड मुक्ति मोर्चा 9 मई को राज्य के सभी जिला मुख्यालय में एक दिवसीय धरना प्रदर्शन करेगा। इस आंदोलन में जेएमएम के सभी पदाधिकारी, सांसद और विधायक शामिल होंगे।
क्या है सरना धर्म कोड और क्यों झारखंड के आदिवासी समुदाय चाहते हैं अपनी अलग धार्मिक पहचान
मुख्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और मध्य प्रदेश के कई आदिवासी समुदायों का मानना है कि उनकी प्राकृतिक पूजा पद्धति है, इसमें पेड़, पहाड़, नदी जैसे प्राकृतिक तत्वों की पूजा की जाती है। खुद को सरना धर्म का मानने वालों का कहना है कि उनका अलग धर्म है।
सरना धर्म कोड की मांग क्यों?
अलग सरना धर्म कोड के समर्थकों का कहना है कि आदिवासियों को जनगणना में धर्म चुनने के लिए अलग विकल्प मिलना चाहिए। भारत के जनगणना फॉर्म में सरना धर्म के लिए अलग से कोई कॉलम नहीं होता, जिससे आदिवासियों को या तो ‘हिंदू’, ‘ईसाई’ या ‘अन्य’ विकल्प चुनना पड़ता है। सरना कोड के समर्थकों का कहना है कि जनगणना फार्म में अलग कोड नहीं रहने से जनजातीय समूह की धार्मिक पहचान लुप्त हो जाती है और उन्हें मुख्यधारा के किसी और धर्म में गिना जाता है।