रांचीः अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर झारखंड की महिलाओं के बीच काम करने वाली संस्था ने मोाइल क्रेशेज ने खास कार्यक्रम आयोजित किया । ग्रामीण इलाकों में कामकाजी महिलाओं खासतौर से खेत-खलिहानों और मजदूरी करने वाली महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है अपने बच्चों की परवरिश। मोबाइल क्रेसेज संस्था ने ऐसी महिलाओं के बच्चों की परवरिश कि जिम्मेदारी उठाई और खूंटी और रांची जिले में कई मोबाइल क्रेसेज चला रही है। आठ मार्च को रांची में हुए खास कार्यक्रम में बेहतरीन काम करने वाली महिलाओं ओर सेंटर को सम्मानित किया गया । खूंटी से विधायक राम सूर्य मुंडा ने इन्हें सम्मानित किया ।
मोबाइल क्रेसेज के लिए मार्च बेहद ही खास महीना है। 14 मार्च 1969 गांधी शताब्दी समारोह की योजना के दौरान एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में ‘मोबाइल क्रेचेज’ की स्थापना की गई। इस परियोजना की शुरुआत ‘कस्तूरबा शिशु विहार’ के रूप में हुई। राजघाट के एक कार्यस्थल पर, धूल और शोरगुल के बीच, मीरा महादेवन के नेतृत्व में इस पहल की नींव रखी गई। कुछ महीनों बाद, देविका सिंह भी इस प्रयास से जुड़ीं। यह एक प्रतीकात्मक शुरुआत थी, जो कामकाजी माता-पिता के बच्चों की देखभाल और संरक्षण के उद्देश्य से की गई थी।
रांची में हुए मोबाइल क्रेसेज के कार्यक्रम में देश भर से लोग जुटे थे जिन्हेें सम्मानित किया गया । महिला दिवस के मौके पर हुए इस आयोजन में संस्थान की सीईओ सुमित्रा मिश्रा ने बताया कि “असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं, विशेष रूप से निर्माण श्रमिकों, घरेलू कामगारों और खेतों में काम करने वाली महिलाओं के बच्चों की देखभाल हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है। इसी जरूरत को देखते हुए मोबाइल क्रेचेज की शुरुआत की गई, ताकि महिलाएं निश्चिंत होकर काम पर जा सकें और उनके छोटे बच्चों को सुरक्षित माहौल, पोषण और देखभाल मिल सके।”

झारखंड में बच्चों की परवरिश से जुड़ी प्रमुख समस्याएं
झारखंड जैसे राज्य में, जहां बड़ी संख्या में महिलाएं घरेलू कामगार हैं या प्रवासी मजदूरी के लिए जाती हैं, वहां छोटे बच्चों की देखभाल और सुरक्षा गंभीर मुद्दा है।
- बच्चों की सुरक्षा: नवजात से लेकर छह साल तक के बच्चे, जो अभी स्कूल नहीं जाते, उनकी देखभाल की कोई संगठित व्यवस्था नहीं है।
- पोषण की कमी: छोटे बच्चों को संतुलित आहार और पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है।
- प्रारंभिक शिक्षा: तीन साल की उम्र तक 80% मस्तिष्क विकास हो जाता है, लेकिन शिक्षा और खेल-कूद की उचित सुविधा न होने के कारण यह प्रभावित होता है।
कैसे काम करता है मोबाइल क्रेचेज?
मोबाइल क्रेचेज का उद्देश्य महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना और उनके बच्चों को एक सुरक्षित व देखभालयुक्त वातावरण प्रदान करना है।
- छह साल तक के बच्चों की देखभाल: सप्ताह में छह दिन, प्रतिदिन 7-8 घंटे के लिए।
- पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएं: संतुलित आहार और नियमित स्वास्थ्य जांच।
- प्रारंभिक शिक्षा और खेल-कूद: बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए गतिविधियाँ।
सशक्त हो रही हैं महिलाएं
मोबाइल क्रेचेज का यह मॉडल न केवल कामकाजी महिलाओं की मदद कर रहा है, बल्कि उनके बच्चों के भविष्य को भी सुरक्षित बना रहा है। इस पहल से झारखंड और अन्य राज्यों में हजारों महिलाएं बेहतर आजीविका और बच्चों की सही देखभाल के बीच संतुलन बना पा रही हैं।
मोबाइल क्रेशेस की झारखंड की टीम लीडर अंशु बताती हैं कि “छोटे बच्चे अक्सर संतुलित खानपान और सही पोषण से वंचित रह जाते हैं, जिससे उनकी सेहत पर गंभीर असर पड़ता है। कई महिलाओं के लिए भी यह एक बड़ी समस्या बन जाती है, क्योंकि अपने छोटे बच्चों की देखभाल के कारण वे काम पर नहीं जा पातीं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है।
झारखंड में कुपोषण की दर विशेष रूप से आदिवासी क्षेत्रों में अधिक है। इसका एक प्रमुख कारण पोषण और बच्चों की देखभाल को लेकर जागरूकता की कमी है। मोबाइल क्रेचेज इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है और सरकार के सहयोग से यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहा है कि झारखंड में ऐसे वंचित बच्चों को उचित पोषण और देखभाल मिले।
हमारा लक्ष्य है कि कुपोषित बच्चों को स्वस्थ जीवन देने के साथ-साथ उन महिलाओं का भी सहयोग करें, जो काम पर जाना चाहती हैं। यह प्रयास सिर्फ बच्चों की देखभाल ही नहीं, बल्कि महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में भी योगदान देगा।”