लातेहारः जिले के कामता पंचायत के सांसद आदर्श ग्राम चटुआग के अन्नदाता किसानों ने अपने बुनियादी अधिकारों—बिजली, पानी, सड़क और जमीन के लिए ज़मीन समाधि सत्याग्रह शुरू कर दिया है। तपती धूप में, खुले आसमान के नीचे, बिना भोजन-पानी के, किसान गड्ढों में दो फीट से अधिक नीचे बैठ गए और कब्र में लेटकर अपनी पीड़ा को आवाज़ देने लगे। आज का यह सत्याग्रह सुबह दस बजे से शुरू होकर दोपहर ढाई बजे तक चला।
खुले कब्र में लेटकर सत्याग्रह का नेतृत्व कर रहे पंचायत समिति सदस्य अयूब खान ने कहा कि 2017-18 में भाजपा के चतरा लोकसभा क्षेत्र के तत्कालीन सांसद ने आदिवासी बहुल चटुआग को सांसद आदर्श ग्राम के रूप में चयनित किया था और संपूर्ण कामता पंचायत को सांसद आदर्श पंचायत घोषित किया गया था। प्रधानमंत्री की योजना के तहत 2019 तक इस गांव में सभी बुनियादी सुविधाएं बहाल होनी थीं, लेकिन छह साल बीत जाने के बाद भी न तस्वीर बदली, न तक़दीर।
किसानों को लगा था कि अब उनके गांव में बिजली, पानी, सड़क और पुल की समस्या दूर होगी, लेकिन कुछ भी नहीं बदला। बिजली के लिए उन्होंने कई बार जिला मुख्यालय के चक्कर लगाए, मगर नतीजा शून्य रहा। पहना पानी, अठुला, परहैया टोला जैसे गांवों में अब भी अच्छी सड़कें नहीं हैं, जिससे इमरजेंसी में बीमार मरीजों को अस्पताल ले जाना भी मुश्किल हो जाता है। एम्बुलेंस इन गांवों तक नहीं पहुंच पाती, और शुद्ध पेयजल भी किसानों की किस्मत में नहीं।
थक-हार कर, आक्रोशित किसानों ने अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए ज़मीन समाधि सत्याग्रह का सहारा लिया। वे गड्ढे खोदकर उसमें गर्दन तक खुद को दफन कर सरकार तक अपनी पीड़ा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इस आंदोलन में गांव की महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल हैं।
बिजली की उम्मीद, मगर अंधेरे का सच
टोला पहना पानी, हठुला, परहैया टोला, कारी टोंगरी, ठुठी डुमर, लोहराई, ननफुलिया, पूरनपनियां, लोथराबर, सनेबोथवा, भेलवाही, बगडेगवा, जहाजीपीपर, चरका पत्थल टांड़, ढोलोबर जैसे इलाकों में न बिजली के पोल हैं और न तारें। किसानों ने बिजली के कनेक्शन तो ले रखे हैं, मगर असल में वे जुगाड़ से बिजली जला रहे हैं।
पेयजल संकट और ज़मीन का संघर्ष
नल-जल योजना के तहत कई टोलों में पानी की टंकियां ही नहीं हैं, जिससे ग्रामीण पानी के लिए तरस रहे हैं। पहले जिन ज़मीनों पर किसान खेती कर रहे थे, उनकी रसीदें ऑफलाइन कट रही थीं, लेकिन नए भूमि सर्वे में हुई त्रुटियों के कारण अब ऑनलाइन रसीदें भी बंद हो गई हैं।
सड़कों की दुर्दशा और बच्चों की परेशानी
परहैया टोला में स्कूल जाने वाले रास्ते पर बड़े-बड़े झाड़-झंखाड़ उग आए हैं, जिससे बच्चों को सांप-बिच्छू का डर बना रहता है। गांवों में न पुलिया है, न सड़कें। सरकार से वन पट्टा भी किसानों को नहीं दिया जा रहा।
ज़मीन समाधि सत्याग्रह में शामिल किसान
इस आंदोलन में अयूब खान के साथ सनिका मुंडा, जीदन टोपनो, कमल गंझु, लेचा गंझु, गब्रेल मुंडा, बुधराम बारला, बोने मुंडा, बैला मुंडा, माईकल हंश, दिलू गंझु, नेमा परहैया, जीवन सांगा, अमृत सांगा, महादेव मुंडा, अंधरियस टोपनो, सावन हेरेंज, जोहन टोपनो, बेने टोपनो, परमेश्वर गंझु, बराई भेंगरा, जागो गंझु, अंजू देवी, सनिचरा गंझु, किसमतिया देवी, शांति देवी, मीना देवी, पूनम देवी, सोहराई नगेशिया, सुरेश गंझु, जगवा गंझु, रायमुनी परहीन, अनिल हेरेंज, पिंटु गंझु, छूमा भेंगरा, दौलू टोपनो, पौलू टोपनो, विजय भेंगरा, बुधराम टोपनो, संजय होरो, फलिंदर गंझु, दीपक सुरीन, दारछरी टोपनो, मुक्ता टोपनो, विनिता कोंगाड़ी, नेमा भगत और सैकड़ों ग्रामीण पुरुष और महिलाएं शामिल रहीं।