कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने का ऐलान हुआ । राजनीति से हटकर तमाम दलों ने बधाइयां दीं । कांशीराम के लिए भी भारत रत्न देने की मांग कर दी गई । मगर देश में आदिवासियों के सर्वोच्च नेता रह चुके मरांग गुमके जयपाल सिंह मुंडा को आखिरकार भारत रत्न अब तक क्यों नहीं दिया गया ये सवाल हर आदिवासी के जेहन में रहता है । देश के निर्माण में करोड़ों आदिवासियों के उनके हक के लिए जीवन समर्पित करने वाले जयपाल सिंह मुंडा को आखिरकार अभी तक भारत रत्न देने में दिल्ली की सरकार क्यों चूकती रही है ये सवाल बड़ा है । सवाल इस लिए बड़ा है क्योंकि जयपाल सिंह मुंडा उस संविधान सभा में आदिवासियों की आवाज थे जिसके मुताबिक देश का शासन चलता है । आज के सांसदों की तरह वे सिर्फ चेहरा दिखाने के लिए अपने समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे बल्कि पूरी शिद्दत के साथ संविधान सभा की बहसों में भाग लेते थे। आदिसवासियों की हकमारी की कोशिश का पुरजोर विरोध करते थे । आदिवासियों के लिए अलग राज्य झारखंड की मांग अगर किसी ने सबसे पहले दिल्ली की सरकार के कानों तक पहुंचाई तो वे थे जयपाल सिंह मुंडा ।
हांलाकि छोटे स्तर पर मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा को भारत रत्न देने की मांग अक्सर होती रही है मगर झारखंड के बड़े नेता चाहे वे कांग्रेस, जेएमएम या फिर बीजेपी के रहे हों नहीं करते हुए नजर आए हैं । जमशेदपुर के पूर्व सांसद और झारखंड आंदोलनकारी शैलेंद्र महतो के मुताबिक उन्होंने कई बार जयपाल सिंह मुंडा के लिए भारत रत्न देने की मांग की लेकिन केंद्र की सरकारों ने तरजीह नहीं दी ।
पुराने अखबारों में नजर डाले तो टीएमसी और मुंडा समाज, गोंड आदिवासी समाज ने जयपाल सिंह मुंडा को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने की बात कही मगर कभी बड़े नेताओं ने दिलचस्पी नहीं दिखाई ।
अब जब की कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई है तो एक बार फिर झारखंड में कुछ नेता मरांग गोमके के लिए आवाज तो उठा रहे हैं मगर अभी तक राज्य के बड़े नेता चुप हैं ।
राजनीतिक फायदे और नुकसान के हिसाब से भी देखें तो आदिवासियों का बड़ा वोट बैंक इससे प्रभावित होता है मगर झारखंडी नेताओं को शायद इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।