बिलकिस बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुना दिया है । जस्सिट नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा है कि गुजरात सरकार बिलकिस बानो केस में सजायाफ्ता मुजरिमों की रिहाई के का फ़ैसला सुनाने के लिए सक्षम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस राज्य में घटना हुई हुई और जहां मुजरिम सजा काट रहा हो वहां रिहाई का फ़ैसला कैसे हो सकता है । सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ महाराष्ट्र सरकार इस मामले में आदेश पारित करने की अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क़ानून का राज हर हाल में बना रहना चाहिए । कोर्ट ने कहा है कि बिलकिस बानो केस के ग्यारह दोषियों को सजा से राहत चाहिए तो उन्हें हर हाल में जेल में रहकर दोबारा याचिका लगानी होगी । कोर्ट ने ये भी आदेश दिया है कि सभी ग्यारह दोषी दो सप्ताह के अंदर जेल में सरेंडर करे ।
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार पर सख्त टिप्पणी की है । कोर्ट ने सजा पूरी होने से पहले रिहाई के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सभी दोषी चौदह वर्ष से थोड़ा ही ज्यादा जेल में रहे और इस दौरान पैरोल और फर्लो का खूब फ़ायदा उठाया ।
बिलकिस बानो के गुनहगारों को दुबारा जेल भेजने का फैसला देने वाली बेंच के जज थे जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां। जस्टिस नागरत्ना 2027 में CJI बनने वाली हैं।
ग़ौरतलब है कि गुजरात दंगों के दौरान २१ साल की बिलकिस बानो जो कि पाँच महीने की गर्भवती भी थी के साथ दंगाइयों ने गैंगरेप किया था । दंगाइयों ने बिलकिस बानो की ३ साल की
बेटी समेत १४ लोगों की हत्य कर दी थी । गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो केस में सजा याफ्ता ११ लोगों को १५ अगस्त २०२२ को वक्त से पहले रिहा कर दिया था जिसकी ज़बरदस्त आलोचना हो रही है । बिलकिस बानो ने गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी ।